SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RLDRENDINUEार प्राSEASEASSE - - - - a mewMEANNIESONSEENERan - मुख बाढिये जुहसें ” इत्यादि भाव फेरि शयनभोग मध्य दूसरो भोग यह सेवा श्रीरोहिणीजीकृत श्रीमातृचरण अरोगावत हैं।। आचमन मुखवस्त्र पीछे श्रीनंदरायजीको चर्वित तांबूल लेत हैं जैसे मंत्ररूप गोप तिनकी छाक समें जूठन बाधक नहीं तैसे विशुद्ध सत्त्वकरि पदार्थ सिद्ध होय तो प्रभु अंगीकार करें । तैसें श्रीनंदरायजीविषं जानिये शयनआर्ती पीछे तहां झारी २ वटा शय्या भोगके बीड़ा पुष्पमाला पास रहें और दुपहरकी माला पास ले हाथमें लेइ आंखिनसों लगाय तब ज्ञानेंद्रियके स्पर्श यशको ज्ञान होय, यशके ज्ञानहीतें छूटि भगवदासक्ति होय।। "यशो यदि विमूढानां प्रत्यक्षाशक्तवारणात् ” इति। याप्रकार प्रत्यहकों यत्किंचित् भाव लिखें। अथ जन्माष्टमीको भाव-पंचा-1 मृतस्नान पीछे अभ्यंगस्नान शृंगारमें केशरी वस्त्र लाल जड़ावके आभरण सुधाको आविर्भाव भयो है वर्ण गौर है सो शृंगारको उद्बोधक है ताते केशरी वस्त्र उभयप्रीतिकोहू आविर्भाव वाही दिन ताते लाल आभरण हैं लाल वर्णहैं सोशृंगारमें जो रस ताको उद्बोध हैं "श्यामं हिरण्यं परिधिम् ।" याकी सुबोधिनीमें निरूपित हैं शृंगारभये पीछे तिलक भेट आर्ती हैं सो मार्कण्डेयपूजावत् हैं। याही शृंगारोत्तर भोगमें औट्यो मीठो दूध वामें गुड़को टूक डारनों तथा श्वेत तिल डारने वामें कटोरी वा चमचासों दूध धरनो। भोगकी ऐसी रीत हैं-“सतिलं गुडसंमिश्रमंजल्यर्धमितं पयः ॥ मार्कडेयादरं लब्ध्वा पिबाम्यायुःसमृद्धये ॥" यह नंदालयको भाव । यह लीला तहाई जन्मदिनकी लीला कहैं। फेरि 'नित्यविधिः' अर्धरात्रितें जन्मलीला महाभोग आये पीछे छठी पुजे सो छठे दिन शुद्ध मुहूर्त आछो न होय तो जन्मदिनके। दिन पूजें तातें पूजत हैं पालने बैठावने तथा कापड़ा आवें - pm
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy