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| भोग पास राखत हैं शृङ्गार भये पीछे गोपीवल्लभोग वनरत्नाको मनोरथ है पीछे ग्वालमें तबकडी है सो भावात्मक हैं पीछे डवराको भोग जो शृंगार भोग आवे तो भावना पृथक् | पालने में बैठे तो एक प्रकार यह है गोपालवल्लभ प्रभुकी ओरको राजभोगके चार भेद हैं-१ घरको जेवत नंद कान्ह इकठोरे, २ वनको छकहारीरी चार पांचक आवति मध्य ब्रजलालकी, ३ न्योतेके बृहद्भोगको प्रकार ५६।४ निकुंजको जेवें नंदमहल गिरधारी ये चार भेद हैं बीड़ी आरसी आर्ती अनो| सर उत्थापनभोग श्रीगोवर्द्धन हरिदासवर्यकों प्रेषित पुलिन्दीयें फलफूलादिक लाय अन्तरंग भक्तनकों देत हैं वे समय प्रतीक्षा करि जगाय भोग अंगीकार करावत हैं गोपमंडलकों पधारत हैं तब पुलिंदीनकों अलौकिक दर्शन अनुभव भयो श्रीगोवर्द्धन हरिदासवर्य भगवदीय श्रेष्ठके संगतें फिरि गोपमंडलमें पधारि श्रीबलदेवजी तथा बड़े गोप गायनके आगे मध्यगाय पीछे प्रभु अत्यंतरंग गोपमार्गमें संध्याभोग स्वीकार करि तहां हांकि हटक इत्यादिक कीर्तनको भाव काहूसों हाँ करी काहूसों ना करी या उक्तिमें दक्षिणनायकत्वमें न्यूनता आवे, ताते ह्यां भक्त द्विविध हैं-दर्शनाभिलाषी हैं तथा खंडिताद्योतक हैं। तहां दर्शनाभिलाषीकों तो हां करी और खंडिताद्योतक हैं वे कहैं कल्हकीरीति ता प्रति ना करी यह हां करी सिंहद्वार पधारे तब सन्ध्या आर्ती श्रीमातृचरण करत हैं मंदिरमें पधारि श्रृंगार बड़ो करि रात्रिको शृंगार स्वीकारकरि यह सेवा अधिकारी जेहैं तिन “कृत-गमनाश्चाध्वनः श्रमैः तत्र मज्जनोन्मदनादिभिः। नीवी वसित्वा रुचिरां दिव्यस्रग्गन्धर्मडितैः ॥” इति । फिरि ग्वाल स्वीकार करि तहां “निरखि
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