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________________ मातृरचितांजनबिन्दुरतिशयितशोभयादृग्दोषमपनयन् ॥ स्मरधनुषि मधु पिबन्नलिराज इव राजते प्रणयिसुखमुपनयन्॥५॥ वचनरचनोदारहाससहजस्मितामृतचयै रात्रिभरमपनयन्॥पालय सदाऽस्मानस्मदीयश्रीविठ्ठलेश निजदासमुपानयन्” ॥ ६ ॥ या प्रकार पद बोलके ता उपरान्त पालनेते सिंहासनपर पूर्वोक्त रीतिसों पधराइये । पालनो उठाय ठिकाने धरिये, ढाँकि धरिये। खिलोनाकी तबकडी, झारी, बडी कटोरी प्रभृतिक सब उठाय ठलाय धोय ठिकाने धरिये । उपरान्त राजभोगकी सामग्री सिद्ध भई होय सो मन्दिरते रसोईताई पेंडे में मन्दिरवस्त्र फिराइये। राजभोग धरनो। राजभोगके लिये चौकी ३ भोगमन्दिरमें सिंहासनके तीनो ओर धरिये । डिगत होय तो नीचे चेली लगाइये। सखडीकी चौकीपर पातर धरिये । जलपानके मथनीको जल झारीमें भरि सिंहासनके दुहू दिशि धरिये नेवरा पहरायके । उष्णकालमें एक कुना, करवा धरिये । ता दिना झारी एक धरिये । अरु चमचा तीनों ओर धरिये । ततो राजभोगाथै यंत्रेषु पात्राणि स्थापयेत् । “ब्रजस्त्रीकरयुग्मात्मयन्त्रे पात्रं च तन्मयम् ।। स्थापितं ते भोजनार्थ योग्यभोजनसम्भृतम् ॥ १०९॥ पाछे टेरा खेचि दृष्टि बचाय राजभोगकी सामग्री धरिये । पेहेलेही राजभोग साज राखनो पाछे प्रभुको पधरावनो । राजभोग साजवेकी रीत । भातको थार अगाडी धरनों । तामें घीकी कटोरी भातमें जेमनी आडी गाडनी। और जलकी कटोरी बाँई आडी गाडनी । और शीत समय होय तो जल तातो - auram
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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