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________________ । होय । यह दूसरो लक्षण भगवदीयको अतएव श्रीगोवर्द्धनमें श्रीचरणारविन्द तथा मुकुट तथा श्रीहस्तकी अंगुरीनकोऊ प्रतिफलन होत हैं। सो सात्विकाविर्भावको लक्षण श्रीगोवर्द्धनकी स्थिति सिंघाकृति हैं । याहीतें दण्डोती शिलासों चरण स्थान | शिलासों श्रीमुख श्रीगोवर्द्धन भगवद्रूप हैं । " शैलोस्मीति ब्रुवन्" इति वाक्यात् । श्रीगोवर्द्धन शिलाकोहू सेवन आवश्यक है । जब श्रीगोवर्द्धन शिला पधरावे तब श्रीगुसांईजीके बालकके श्रीहस्तसों पधरावें । शिलाकी जो निष्कर्ष भेट जो भेट होय सो श्रीजीकों भेट करे। श्रीगोवर्द्धनके नाम येही है। श्रीगोवर्द्धनमें धरें नहीं । भेटको प्रमाण नहीं । जो बनि आवे सो धरे जेंसें श्रीयमुनाजीकी सेवाको मनोर्थ होय तो घाटके ऊपर वस्त्र बिछाय भावनासों पधराय साड़ी चोली आभरण पहिराय माला समर्पि भोग धरिये । भोग सराय प्रसाद आपु लीजिये । औरकों बांटिये साड़ी चोली आभरण होंय सो जहां मनोर्थ होय तहां श्रीगुसांईजीके घर भेट करिये । या प्रसादके अधिकारी वेई हैं। प्रवाहमें बोड़िये नहीं । शृङ्गार चलतमें न होय बैठें जब होय । जहां शालग्राम होंय तहां उत्सवके जन्मके समें शालग्राम स्नान करे श्रीगोवर्द्धन पूजाके समे श्रीगोवर्द्धन शिला स्नान करें और जहाँ शालग्राम नहीं तहाँ जन्मके समय तथा श्रीगोवर्धन पूजाके समय सब बेर श्रीगोवर्धन शिलाही स्नान करे । व्यापि वैकुण्ठमें श्रीगोवर्धन रत्नधातुमय हैं। सारस्वत कल्पीय पूर्ण प्रागट्य समय जिनको नंदालयको दर्शन मणिमय स्तंभादिकको होय तिनको श्रीगोवर्धनहूको ऐसो दर्शन होय । श्रीयमुनाजीकीहू सीढी रत्नबद्धोभयतटी ऐंसो दर्शन होय । और बेर सदा भौतिक दर्शन होंय । भौतिकमें आध्यात्मिक भाव करे तो आधिदैवि--
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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