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इनकोहू ज्ञान ऐसों स्वरूपको बोध होय गयो । श्रीगुसांईजीहू सात स्वरूपमें न पधराये । यातें ये जो ज्ञानरूप हैं । ज्ञानमें भक्ति कहां यह ज्ञानको फल । श्रीघनश्यामजीविषे वैराग्य जबते श्रीमदनमोहनजी अन्तर्हित भये तबतें विरहानुभवही | किये श्री अंगके प्रति चिह्न लिखें ऐसी तन्मयता श्रीमदाचार्य| जीकी बहूजी श्रीमहालक्ष्मी बहूजी, श्रीगुसांईजीकी बहूजी श्री| रुक्मिणी बहूजी-श्रीपद्मावती बहूजी, श्रीगिरधरजीकी बहूजी
श्रीभामिनी बहूजी,श्रीगोविन्दजीकी बहूजी श्रीराणी बहूजी,श्री| बालकृष्णजीकी बहूजी श्रीकमला बहूजी, श्रीगोकुलनाथजीकी |बहूजी श्रीपार्वती बहूजी, श्रीरघुनाथजीकी बहूजी श्रीजानकी बहूजी, श्रीयदुनाथजीकी बहूजी श्रीराणी बहूजी,श्रीघनश्यामजीकी बहूजी कृष्णवती बहूजी। ये जिन जिनके अर्दोग हैं तिन तिनके तदात्मक स्वरूप जानिये ।ये दश स्वरूप बहूजीनकेहूं | अलौकिक जानिये । अथ श्रीगोवर्द्धन पर्वतको स्वरूप, इनकों दास्यभक्ति सिद्धसाधनरूप । दास्य श्रीगोवर्द्धनको याते हरिदासवर्य श्रेष्ठ हैं हनुमानको देह दास्योपयोगी । और श्रीगोवईनको देह । तातें देहसम्बन्धी पदार्थ सब भगवदुपयोगी हैं। कन्दरामें छहों ऋतु सानुकूल हैं। जा ऋतुमें जैसो निजमन्दिर वा शय्यामन्दिर चाहिये तैसोंही होय । झिरनाहैं सो जलपानके योग्य, तृणहैं सो आस्तरणार्थ, फल हैं सो पुलिन्दीद्वारा उत्थापन भोगकी सामग्री सिद्ध होत हैं। इनके सङ्गते पुलिन्दीहू भगवदीय भई । “पूर्णाः पुलिन्द्यः ” इति ऐसें भगवदीय हैं। | भक्तकोलक्षण यह हैं-"आर्द्रीकरणत्वं वैष्णवत्वम्" जैसे भीजे कपड़ाकों सूको कपड़ा लगे तो सूकोहू भीजो होय। पुलिन्दी भीलनकी स्त्री येहू भगवदीय भई । भगवत्स्पर्शकरि पुलकित
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