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लेजाऊं मेरी वृत्ति है सो लेहि मोकूँ तो संन्यास है नहीं कहोगे तो ऋण होयगो ऋणको स्वीकार कियेपर चरणारविन्द नछोड़े तब श्रीगुसांईजीहू प्रसन्नभये याते ऋण होयगो तो विदेश जायके जीवनको उद्धार करेंगे भूमिमें भक्तिप्रचारके लियेही पिता पुत्र या प्रकारको वंश प्रगट किये । श्रीगोकुलनाथजीविषे यश है चिद्रूप मालाको प्रतिद्वन्द्वी भयो तब माला स्थापनकिये यह यश प्रसिद्धही है श्रीरघुनाथजीविषे श्रीहैं। तुलसीदास श्री गोकुलमें आये तब श्रीगुसांईजीसों कहे सीताजी सहित श्रीरामचंद्रजीको दर्शन होय यह कृपा करो। तबहीरघुनाथजीको व्याह भयोहतो सो श्रीजानकी बहूजी पास ठाड़ेहते तब श्री आपु आज्ञा दिये जो तुलसीदासको दर्शन देउ तब श्री रघुनाथजी जानकी बहूजी वैसोंही दर्शन दिये । तब तुलसीदासजी कीर्तन कहे “ वरनो अवध गोकुल गाम, उहां सरजू इहां श्रीयमुना एकही लख ठाम ॥" ऐसो श्रीगुसांईजीकी आज्ञाको विश्वास । " श्रियो हि परमा काष्ठा सेवकास्तादृशा यदि" तब आपु प्रसन्न होयकें श्रीजीके यहांकी गदरजीकी सेवा दिये दिवारीके दिन श्रीजीके ह्यां शयन आरती भये पीछे॥६॥आती होय यथाक्रम सातों स्वरूपकी औरकी तब श्रीरघुनाथजीको बारा आर्तीको आवे तब पहले गदर उठायें रहे पीठकके ऊपर आगेते थोड़ो दीसे पीछे आर्ती करें यह रीति श्रीयदुनाथजीविषेज्ञान हैं मंदिरमें जाय मंदिर वस्त्रदेत यह भांति मन्त्रको फल आपुश्री गुसांईजी श्रीबालकृष्णजी पधरावत हते सो न लीये यातें जो श्रीबालकृष्णजी गोदके ठाकुर हते सात स्वरूपमें नहीं मुख्य स्वरूप आठही हैं। “षोडश गोपिकानांमध्ये अष्ट कृष्णा भवन्ति हि ।" यह ज्ञानहें जैसे नदीनमें ज्ञान हैं।" भग्नगतयः सरितो वै” तैसे