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कोनसों ? ताको विचार लिखत हैं-यह प्रागट्य श्रीनन्दराय के । ह्या प्रादुर्भूत भये तिनके जानिये । आपु तो श्रीयशोदाजकि हृदयमें विराजत हैं वासुदेव तथा मायाको श्रीनन्दरायजीके रेतःसम्बन्ध तथा श्रीयशोदाजीके गर्भसम्बन्ध हैं पुरुषोत्तमको रेतःसम्बन्ध नहीं, गर्भसम्बन्धहू नहीं । जा समय आप प्रगट भये सोवासुदेवको ग्रहण करिकेही प्रगटे, माया दूसरे क्षणमें भई भगवत्प्रादुर्भावकों दूसरो क्षण सो मायाको जन्मनक्षत्र ता समय श्रीयशोदाजीको इतनों ज्ञान भयो जो कछू भयो पर निश्चय न भयो पुत्र वा पुत्री सामान्यज्ञान भयो सो कहैं “ यशोदा नन्दपत्नी च जातं परमबुध्यत । न तल्लिङ्गं परिश्रांता निद्रयापगतस्मृतिः॥” इति । भगवत्प्रादुर्भावके तीसरे क्षणमें विशेष ज्ञान हो सो तो मायाको दूसरे क्षण भयो तातें सामान्य ज्ञान भयो तीसरे क्षणमें विशेष ज्ञान भयो यह शास्त्रकी रीति पहले क्षणमें उत्पत्ति दूसरे में सामान्य ज्ञान तीसरे क्षणमें विशेषज्ञान तैसें मायाके पहले क्षणमें उत्पत्ति दूसरे क्षणमें सामान्यज्ञान तीसरे क्षणमें विशेषज्ञान यातें या प्रकार भयो श्री वसुदेवजीको तो दोय घड़ी चतुर्भुज स्वरूपको दर्शन भयो तिनको अनुभवकरि जासमें श्रीनन्दरायजीके ह्यांप्रागव्य ताही क्षणविषेश्रीवसुदेवजीको दर्शन दिये "बभूव प्राकृतः शिशुः"तब पधरायवेकी इच्छा ता समें श्रीयशोदाजीके माया भई मथुराते श्रीवसुदेवजी उत्तम पात्रमें वस्त्र बिछाय लेचले पीछे श्रीयशोदाजीके पास पधराये । स्वरूप इहाँ प्रगट भयो तैसे दर्शन मथुरामें उनहीको पधराय लाये वस्तुतः एकही हैं व्यापकतें मथुरामें दर्शन दिये ते मथुरामें दर्शन देवेको प्रयोजन यह चतुर्भुज स्वरूपको आप विषे अन्तर्भाव करनो हैं व्यूहको कार्य पड़ें तब
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