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________________ । प्रगट करें व्युहत्रयविशिष्टको प्राकट्य मथुरामें वासुदेवविशिष्टको प्रागल्य ब्रजमें यशोदाजीको स्तन्य भयो सो मायाकृत तथा वासुदेवकृत हैं। प्रभु स्तनपान करत हैं सो पूतनाद्वारा सोरह हजार बालक अपने उदरमें आकर्षण किये हैं उनको नित्य मायाजनित स्तन्यको पान करें हैं । तो बालक यह यौगिक अर्थ है सो 'आत्मनः सकाशाज्जातः' मुग्ध होय । तब लीलारसकी प्राप्ति न होय तातें वासुदेव मोह होन न दिये। | यातें केवल पद धरे “केवलमायाजन्यं स्तन्यं भगवान् पिबेत्" और जो वासुदेवजन्यस्तन्य ही हों तो बालकनकों मोक्ष होय सो मायाप्रतिबन्ध कीनी । यातें मोहहू न भयो और मोक्षहू न भयो । ऐसे भये तब लीलारसकी प्राप्ति भई और पूर्णब्रह्मको रेतःसम्बन्ध नहीं तब “नन्दस्त्वात्मज उत्पन्नो" योंक्यों कहें ? ताको निर्णय वासुदेवपरत्व श्रीनन्दरायजीकी बुद्धि है रेतःसम्बन्धत्वात् । ताते नन्दबुद्धिको भ्रांतत्व नहीं सत्यही है । आत्मज शब्दको यौगिक वासुदेव विषे यह प्रकार जाननो । याते ब्रजभक्तनको भाव तो पुरुषोत्तमविषे ही है फलरूप"आत्मानंभूषयांचक्रुः" आत्माकोभूषणकरें जैसे आत्मा निर्विकारहै व्यापक है तैसें इनकी देहहू निर्विकार व्यापक है। देह नित्य न होय तो जा देहसो ब्रह्मानन्दानुभव ता देहसों भजनानन्दानुयोजने” इति । अनित्य देह होय तो ब्रह्मानन्दमें लय होय जाय जैसें इनको देह निर्विकार है और नित्य है तैसे इनके भावको भावहू निर्विकार है और नित्य है नन्दालयमें प्रातःभगवदर्शनार्थ पधारत हैं तब मातृचरण प्रभुकों जगावत हैं। जो यहां प्रभु जगाये नहीं जागत सब व्रजभक्त अपने अपने गृह आय भावपूर्वक प्रबोध पढ़िकें जगावत हैं याते श्रीगुसांईजीके बालकतें अतिरिक्त औरकों - -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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