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________________ A NDROIDARBHAmedia - - प्रबोधको अधिकार नहीं । मन्दिरमेंहू न पढ़ें जैसे ग्रन्थपाठ करतहैं तैसें प्रबोध पाठ न करें। गोपीवल्लभ तथा सन्ध्याभोग ये दोऊ इनकी ओरके भोग हैं तैसे येऊ भोग दोऊ श्रीगुसांईजीके घरमें हैं। और वैष्णवके यहां नहीं गोपीवल्लभके ठिकाने श्रृंगार भोग आयें तथा सन्ध्याभोगके ठिकाणे उत्थापन भये और उत्थापनभोग आवें सामग्री कदाचित् धरे ऊपर ताहूसों शृङ्गार | भोग तथा उत्थापन कहें कृति नन्दालयको करना। "सदा सवात्मना सेव्यो भगवान् गोकुलेश्वरः।" इति । ताते कृति नन्दालयकी करे भावना ब्रजभक्तनकी करै । इनकी कृति न करै "स्मर्तव्यो गोपिकावृन्दे क्रीडन्वृन्दावने स्थितः इति वाक्यात् । जितनी कृतिको अधिकार कृपा करिकें दिये हैं तितनी करे। यथा डोल प्रभृति स्मरणहूको जितनों अधिकार कृपाकरिके दिये हैं इतनो स्मरणहू करे विशेष भावना तो श्रीमदाचार्यजी स्वपरत्वही आज्ञा किये । “गोपिकानां तु यहुःखं तदुःखं स्यान्मम कचित् । गोकुले गोपिकानां च सर्वेषां ब्रजवासिनाम् ॥ यत्सुखं समभूत्तन्मे भगवान् कि विधास्यति । उद्धवागमने जात उत्सवः सुमहान् यथा ॥ वृन्दावने गोकुले वा तथा मे मनसि कचित् ॥” इति । यातें निष्कर्ष यह जो भक्तिमार्गकी मर्यादा तो यह है जो कृति तथा भावना नन्दालयकी करें। “यच्च दुःखं यशोदाया नन्दादीनां च गोकुले" यच्च दुःखं यशोदायाः-नन्दः आदिर्नन्दपदेन उपनन्दादयः। चकारेण अंतरंगगोपाः एतेषां यदुःखं चकारात्सुखमपि निरोधकार्यम् । यह भावना करै और गोपिकानां तु या शब्द करिके पूर्वको व्यावर्तन किये । तातें यशोदा प्रभृतिनकी भावना करे। गोपिकादिकनकी न करे और "उद्धवागमने जात उत्सवः सुम - - - ma
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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