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धरनो। सब बासन नये जलसों खासा करने । रसोई बाल भोगमें जल छिड़कनो । सामग्री बेगि करनी । स्नान करायके झारी तथा दूधघरकी सामग्री भोग धरनी। छन्नासों ढाकिके पास राखनी । और सब स्वरूपनकू स्नान करावनों । जो ग्रस्तोदय होय और बेगि होय तो उत्थापन भोग तथा सन्ध्या भोग भेलो करनों। और अबेर होय तो सन्ध्या भोग जुदो धरनों । सन्ध्या आरती करके श्रृंगार बड़ो करनों ग्वालको डबरा धरनों। स्पर्श होय तो झारी उठाय दर्शन खुलावने । उग्रहभये पाछे शयन भोग आवे । दार छड़ियल, शाक बड़ीको । चोखा सेर 5 दार सेर ॥ ढील न होय सो करनो । जो रसोईकी ढील होय तो स्नान भये पाछे पेड़ा भोग धरि टेरा खेंचनो । पाछे शयनभोग धरनो। नित्य नेममें मगद वारा प्रमाणे आवे । जो ग्रहण पहिली रात्रीमें घड़ी २ रात्र गये होय तो शयनभोग पहले धरनो और उग्रह भये पाछे स्नान करायके पोढ़वेको शृंगार करि पेड़ा भोग धरिये । भुजे बीजकोलाके बीज तथा खरबूजाके बीज, मखाना, चिरोंजी, मगदके लडुवा सब भोग धरि पाछे अनोसरकी तैयारी करिके भोग सरायके पोदावने । और जो थोड़ी रात्रि रहे उग्रह होय तो स्नान कराय मंगलाके श्रृंगार करिके मंगलाभोग धरनो। और जो घड़ी चार रात्रि गये ग्रहण होय तो शयन आरती करिके दोय घड़ी दिनसों पोढ़ावने । और जब ग्रहणको स्पर्श होयवेको समय होय तब घंटानाद करिके जगावने । और उग्रह भयेपै स्नान कराय लिखे प्रमाण भोग धरके पोदावने अनोसर करनो और जो ग्रस्तास्त होय और जो घड़ी दोय दिन चढ़ेते उग्रह होय तब मंगला भोग पीछे धरनो और जो तीन चार घड़ी दिन चढ़े उग्रह होय तो मंगलाभोग पहले धरनो । सो मंगलाआरती भये पाछे
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