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________________ ग्रहणके दर्शन खोलने । स्पर्श होय तब झारी उठावनी । शास्त्ररीतिसों उग्रह होय तब स्नान शृंगार गोपीवल्लभमें अनसखड़ी धरनी । नित्य नेममें मगद आठ नग राजभोगमें धरने । और राजभोगमेंहूँ अनसखड़ी धरनी । भातके ठिकाने सीराको थार आवे ताको चून सेरऽ१ घी सेर 5 बूरो सेर ७२ चिरोंजी सेर । पूड़ी सेर ऽ४ की झाक १ अरवीको छाछि डारिके पतरो करनो तीन शाक और करने । भुजेना १ लपेटमा, एक सादा, रतालूकी पकोरी । लोन सँधानो । निंबू, मिरच, आदा पाचरीके दिन होंय तो धरनी। शीतकाल होय तो गुड़, दही, शिखरन, रायता, माखन, बूराकी कटोरी सब नित्य प्रमाण धरनी । शीराके थारमें दारके ठिकाने बूराकी कटोरी धरनी बूरासों थार साननो और अनोसर नित्यवत् । साँझको दोय बड़ी दिन रहे तब न्हाय सब सिद्धकरे। नये जलसों सब सामग्री चढ़े। सखड़ीसें दार भात, मूंग, और सब अनसखडीमें करनों । सूर्यग्रहणमें अस्त होय तो याही प्रमाणे उग्रह भये पाछे शयन भोग अनसखड़ी धरनो । सबेरे सूर्य उदय होय तब अपरसमें न्हानो। सूर्य ग्रहण ग्रस्तोदय होय तब मंगलाभोग पाछे जो चार घड़ी तीन घड़ी दिन चढ़े होय तो मंगलाभोग पीछे धरनो। जो सूर्य ग्रहणको स्पर्श प्रहर दिन चढ़े भीतर पेहेले होय तो गोपीवल्लभमें अनसखड़ी धरनी । ग्वालको डबरा धरनो । पलना झुलावनो । दोय घड़ी दिन चढ़े स्पर्श होय तो मङ्गलाभोग ही धरनो। और सब पाछे होय जो अनोसर जितनो समय न होय तो उत्थापन भोग धरनो। और जो उत्थापनके समयः ढील होय तो पेड़ा, भुने बीज भोग धरिके अनोसरकी सब तैयारी करिके भोग सरायके आचमन सुखवस्त्र कराय बीड़ा धराय अनोसर करनो । शीतकाल होय तो और जो दोय घड़ी दिन चढ़े ग्रहण लगत होय NEATMER BERISES
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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