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तो अन्धेरेमेही राजभोग आरती करनी। फिर शृंगार बड़ो करि मङ्गलामें रहे इतनोही राखनों । ग्रहणकी ढील होय तो पेड़ो बिछाय टेरा खेंच लेनो । पाछे जब स्पर्श होय तब पेड़ो उठाय शय्या ठाड़ी करि दर्शन खोलने । नित्यके मङ्गलभोगके समेहूँ घड़ी दोय घड़ी ग्रहण अबेरो होय तो मङ्गलभोग पहले धरनो
और जो नित्यके मङ्गलभोगके समेंसूं कछुक सूर्य ग्रहण पहले होय तो मंगलभोग पीछे धरनो। उष्णकालमें सूर्य ग्रहण दुपहरेके समय होय तो स्पर्श स्नान श्रीठाकुरजीकू करावनो केशरीकोरके धोती उपरना धरावने । श्रीमस्तकपे तिलक अलकावली ।लर दोहेरा करिके कण्ठमें धरावनी । श्रीमस्तक खुलो रहे। आभरण मंगलाप्रमाणे धरावने । श्रीकण्ठमें एक छोटी माला । मोतीकी एक कण्ठी धराय दर्शन खुलावने।और आश्विनकी जो पुन्योको ग्रहण होय तो शरदको उत्सव पहले दिन करना । और पुन्यो जो घटी होय अरु चौदशको ग्रहण होय तो तेरसकू शरदको उत्सव करनो । और जो दिवारीकू ग्रहण होय तो रूपचौदशकू दिवारीको उत्सव भेलो करनो । और अन्नकूट अक्षयनौमीकूँ करनो। और गोपाष्टमी। संध्या आरती पीछे शृङ्गार बड़ोकरिके वस्त्र दिवारीके धरावने शयन भोग सरे तब कान जगावने हुट
में विराजे । दीपमालिकाके दीवा सब जुड़ें। शृङ्गार सुद्धा पोढ़ा वने । मङ्गलनी होरीके दिन होरीको लिख्यो है। ताप्रमाणे थार अनोसरमें आवे । मिठाई सेर 5१ सब तहरकी आवे और जो फाल्गुनी पुन्योको ग्रहण होय तो डोल ग्रहण के दिन करनो। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रकी बाट न देखनी । ऐसेही स्नानयात्राकू करनो। आषाढ़ी अमावास्याकू जो ग्रहण होय तो और दूसरे दिन परिवाकू पुष्य नक्षत्र होय तो रथयात्रा दूजकू करनी। और | जो तीजकू पुष्य नक्षत्र होय तो तीजकूकरनीचन्द्रग्रहणके तीन