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________________ चाPAPur o gamouTRANSympt । । INNOMorename - ROERONEmaase K HONOR लेपात्पात्रप्रमार्जनात् ॥ त्वत्सेवांतरधर्मेषु रतिर्भवतु निश्चला"। ॥१६४॥ सखडी पात्र दोय बेर मांजिये । अनसखडी पात्र एक बेर मांजिये । पाछे स्वच्छ रीतिसों धोय ठिकाने राखिये । अरु खासाके पात्र पेंडाकी भूमीपर न धरिये । सखडी भूमि धोय पोत स्वच्छ करि सर्वत्र तालामङ्गल करि जलपानकी मथनीको जल आछी भांत ढाँकिये । उपरान्त बाहिर आइये । तब प्रसादी तुलसी ले ग्रहण कीजिये।" श्रीमत्तुलसि कल्याणि श्रीमच्चरणवासिनि । अङ्गीकुरुष्व मामेवं निक्षिपामि मुखाम्बुजे"॥ १६९॥ या विज्ञप्तिसों तुलसी दल ग्रहण कीजिये ॥ अथ चरणोदक लेत समय विज्ञप्ति। “छिन्नस्तेन महीस्थेन गर्भवासोतिदारुणः॥ पीतं येन सकयदि श्रीकृष्णचरणोदकम्" ॥१६६॥चरणामृत ले हाथ शिरपर आँखिनसों लगाय फिराइये । पाछे अलौकिक लौकिक वैदिक | यथायोग्य सम्मान करिये । और ब्राह्मण, वैष्णवनको सम्मान करिये । और नित्यकर्मजपपाठादि न्यून होय तो सम्पूर्णकरिये। ततो महाप्रसादं विज्ञापयेत् । “कृष्णभुक्तानशेषत्वं विरिञ्चिभव दुर्लभः॥तद्रसास्वादतो मां हि कृष्ण दास्ये नियोजय"॥१६७॥ या विज्ञप्तिसों महाप्रसादलीजियो बिगडयो सुधरयो स्वाद कहिये जो फिरि आगे सावधान होयके करे । और प्रसाद लेत समय वृथालाप न करिये । महाप्रसाद अलौकिक पदार्थ जानिलीजे । अन्नबुद्धि न राखिये । उक्तञ्च विष्णुपुराणे “पावकान्युपपापानि महापापानि यानि च ॥ तानि सर्वाणि नश्यंति हरिभुक्तानभोजनात् ” ॥ १६८॥ ततो गरुडपुराणे “ पड्मासस्योपवासस्य यत्फलं परिकीर्तितम् ॥ विष्णोनैवेद्यसिक्तेन तत्फल भुञ्जतां deses ed - - RANEMATARAJESH
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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