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________________ श्रीकृष्णायनमः । श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः॥ श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाश। चौथा भाग। ATE AR - यह श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाशके चार भाग। यामें यह चौथो भाग, तामें यह आरतीको पुस्तक श्रीमहाप्रभूजीके श्रीगुसांईजी जिनके सातों लालजीकी बहुजी तथा श्रीबेटीजिनके भी हस्तकी सेवा प्रेमसों कीनी है, सो यह सेवा अपने हाथसों करके विनियोग प्रभुनको सेवामें करेगो वा देखेगो, और पढ़े । गोसाई देवीजीव जाननो, केसेके बोहोत वर्ष गुप्तवस्तु हती सो मैं वैष्णव आपको दासानुदास मुखिआ रघुनाथजी शिवजी जानी गिरनारा ब्राह्मणने अपने हाथसों लिखकर वैष्णवनके उपकारार्थ संग्रह करी. जो कोई वैष्णव वांचेगो वा देखेगो वांको हमारे भगवतस्मरण. प्रथम मंदिरको चित्र (पेज नं २९९) सों लेक, अंतताई १६७ आरतीके चित्र हैं तामें उत्सवनके नाम लिखे हैं, और जाके उपर नाम नहीं है वो आरती अधकीमें है सो जाके घरमें उत्सव मान्यो जाय तामें सों लेनी और चातुर्मासमें अथवा नवविलासके लिये अधकीमें लिखी है यथारुचि लेनी ,
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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