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यह पद गावे-" मङ्गलमगलं ब्रजभुवि मङ्गलम् ” । यह गावे
और "प्रेखपर्यशयन"। यह दोनोंपद श्रीगुसांईजीके गायके पलना झुलावे फिरि गोपी, ग्वाल वैसे ही पधरावने । सो गोपीनके हाथमें थारी तामें कुम्कुम्, अक्षत, दूब (दूर्वा ) नारियल, पावली, चारयोनकेमें होय । और ग्वालनके कन्धानपें दहीकी कांवर होय। याही रीतिसों पधरावने । प्रथम गोपी नन्दबावाकों तिलक करे। अक्षत लगावे दोयदोय बेर । और दूब माथेपे पागमें खोसे। कुम् कुम्के थापाछातीपे तथा पीठ ऊपर दीजिये। पीछे तिवारीके द्वार थापा लगावें । पाछे थारी पास धरनी। पाछे ग्वाल श्रीनन्दरायजीकों दहीको तिलक करे। पाछे दही नन्दरायजीके ऊपर डारे। पाछे नन्दमहोत्सव होय चौकमें आयके । दहीमें हरदी चूना डारिकें “आज नंदके आनन्द भयो” ॥ इत्यादि बधाई गावे । दश कीर्तन पलनाके होंय तहाँ ताई पलना झूले । पाछे आरतीथारीकी चाँदीके दीवलाकी होय । राई, लोन करके नोंछावर करनी । पाछे ढाढ़ीके कीर्तन होय । पाछे नन्दरायजीकों पटापें पधरायके दंडवत करनों। श्रीप्रभूपें वस्त्र नोंछावर करनी । पाछे आरसी दिखाय आशीश गाइये । सो यह पद-"रानी तिहारो घर सुवस वसो' । यह अशीशगाकें मन्दिरते निकसके दंडवत करिये । फिर तिलक समयके श्रीफल सिंहासनपर धरे होंय सो पलनामें प्रभु विराजें तब उठाइये । और बीड़ा तिलकके गोपीवल्लभ सरें तब काढनें। पाछे पलनामें मङ्गल भोग धरनों और कहूँ मङ्गल भोग सिंहासनपर भी आवे है । अब झारी, फिरकरती भरके धरनी पाछे नन्दमहोत्सवके भीजे होंय सो देहकृत्य करि स्नान करि मन्दिरमें जायके मङ्गलभोग सरावनो । सो आचमन मुखवस्त्र करायके
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