________________
धरायके पाछे पंखा नयेमेंसों छोटे दोय हाथमें लेके दोनों हाथनप्तों करके गादीके पीछले तकिया खोंसके धराइये और सब || पंखा दोय हाथनमें लेलेके करे , सो सब पंखा दोनों आड़ी पड़पापें धरे तथा शय्याके पास पड़घापें धरे । सो पंखा दशहरा ताँई रहे फिर बड़े होय जायँ ऐसे सब स्वरूपन। चन्दन धराविनो। पाछे दंडवत करि टेरा करनो । चरणारविन्दमें तुलसी समर्पनी। पाछे सखड़ीके पड़पा दोय माड़ने तिनमें एक दही भात राधाष्टमीप्रमाणे । यामें सधानों नित्यकी कटोरी धरनो।
और दूसरे पड़घा घोरयो सतुआ सेर s॥ बूरो सेर 5॥ घी सेर 5= और अनसखड़ी चोकीपें धरनी। ताकी विगत-बीजके लडुवाके, बीज सेर ॥ बूरो सेर 5१ पेड़ा सेर ७॥ वासोंदी सेर 5१ पणाके ओला सेर । खाँड सेरऽ॥ पणाकी दार दोय तरहकी भीजी आध आधसेर, बदाम, पिस्ता, चिरोंजी, मखाना ये चारयों भुंजे कोलाके बीज आध छटाँक फल फूल, केरीको मुरब्बा, मीठो दही सेर ॥ जीराको दही सेर 5॥ लूण, मिरच, बूराकी कटोरी ये सब भोग धरनो धूप दीप तुलसी शंखोदक करनो। पाछे सात डबुआ जलके भरके धरने । सात डबरा सतुआके तामें टका ७ बूरो, छटांक २ घृत, काकड़ी ७, पंखा ७ इन सबको संकल्प करनो। पाछे सेवक ब्राह्मणको देनो। पाछे समय भये भोग सराय बीड़ा २ धरने।बीड़ा १ अधिकी धरनी। साज सब माण्डके जलकी परात छोटी चौकी धरनी । तामें नाव तथा खिलोना फूल तेरावने । आरती थारीकी करनी पाछे नित्यक्रमसों अनोसर करनो॥
उत्थापनमें चन्दनकी गोली सूकी होय तो गुलाब जलसों भिजोवनी । उत्थापनभोगमें पणा नित्य आवे। ताको ओला'
maaaaaaaaa
ESHIREEEE
R
-