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विवाह है इनको पतिभाव है ये भक्त उभयलीलाविशिष्ट हैं कितनेक भक्तनको ब्रजलीलामें ही अंगीकार कितनेनको राजलीलामें अंगीकार जैसे नंदादिक प्रभृतिनको, कितने भक्तनको राजलीलामेंही अंगीकार बजलीलामें नहीं जैसे वसुदेवादि प्रभृतिनको, कितनेक भक्तनकोबजलीला तथा राजलीलामें दोऊनमें अंगीकार जैसे श्रीयमुनाजी उभयलीलाविशिष्ट जतायवेके लिये तुर्यप्रिया यह नाम है कालिंदी चतुर्थ हैं याते तैसे कुमारिकाहू उभयलीलाविशिष्ट हैं । उत्तरार्धकी सोलहमें अध्यायकी सुबोधनीमें लिखे हैं " नन्दगोपकुमारिका भगवता द्वारकायां नीता एव। द्वारकामाहात्म्ये त्रयोदशाध्याये-अनुयाता भगवता ततस्ता गोपकन्यकाः । नमस्कृत्य च गोविन्दं ययुः सर्वा यथागतम् ॥” इति वाक्यात् । याहीतें गोपीचन्दन द्वारकामें हैं। __ श्रीगुसांईजीको उत्सव पौषवदि ९ श्रीपादुकाजीको अभ्यङ्ग राजभोग सङ्ग जुदो भोग आवे, प्रभुको आर्ती करे श्रीपादुकाजीकों तिलक आर्ती यह प्राकट्य स्वार्थ परमार्थ हैं। स्वार्थ तो सुधाको अनुभव वेणुहूकों है वेणु अनुभव आपु करि औरकों दें। यहां और सो दैवी तिनको उपदेशद्वारा सुधास्थापन यह परार्थ और परमार्थ तो ‘जीवयमृतमिव दासम्' यह भगवद्वाक्य है । वाक्य बन्ध है । ताते वाक्पति सुतको आविर्भाव होय । तो वाक्पूर्ण बन्ध होय तब सुधारसको आविर्भाव करि मुख्य स्वामिनी दासत्वकी प्रार्थना किये । स्तोत्र अष्टक प्रगट किये । अतएव श्रुतिप्रतिपाद्य सो ब्रह्म यह श्रीआचार्यजीको स्वरूप सुधारूपत्वतें जो श्रीकृष्णचंद्र साक्षात् वेदके वाक्यात् त्यों ह्या साक्षात् सुधाके दाता 'अदेयदानदक्षश्च ' इति । और श्रीगुसांईजी विषे वेणु भावतें देहभाव विशिष्ट जो गीताके
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