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Asmamme
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दाता भई याहीतें अलौकिक आभरण कहै “तरंगभुजकंकणप्रकटमुक्तिकावालुकानितम्बतटसुन्दरी नमत कृष्णतुर्यप्रियाम्" येहू स्वामिनीजी हैं सखी श्यामरूप हैं। शृङ्गाररूप हैं इनको हू यूथ प्रथम कहैं।श्रीगङ्गाजीके दर्शनते "ब्रह्महत्यापहारिणी" इति। और श्रीयमुनाजीके स्मरणमात्रतें पातकमात्रकी निवृत्ति होय " दूरस्थोपि स पापेभ्यो महद्योपि विमुच्यते " इति । जैसे श्रीवासुदेवके मूलभूत श्रीकृष्णचन्द्र तैसें कालिन्दीके मूलभूत श्रीयमुनाजी। अथ श्रीमदाचार्यजीको स्वरूप श्रीकृष्णचन्द्रके आस्य हैं प्रभु विचारे जो स्वीय निज माहात्म्य हैं सो भूमिविर्षे दैवीप्रति तुम्हारे प्राकट्य विनु प्रगट न होइ ताते तीन प्रकारसों प्रगट होउ यह आज्ञा भई प्रथम तो सन्मनुष्याकृति ऐसो स्वरूप देखिके प्रेमपूर्वक दैवी जीव शरण आवेंगे और दूसरी आज्ञा अति करुणावंत होउँ तब देवीजीवनसू निकट आयोजाय तब उपदेश लेई और तीसरी आज्ञा हुताश होय जे शरण आवें उपदेश लेत हैं तब उनके पाप निकसिके गुरुके सम्मुख आवत हैं जो गुरु तेजस्वी होय तो दाह करे तातें हुताश जो अग्नि तद्रूप होय जनके पाप दाहकरो या प्रकार देवी में जे पुष्टि सृष्टि हैं तिनको आसुरभाव भयो है सृष्टि प्रक्रियाके प्रारम्भही देवी जीवते आसुरी जीव जब जुद भये तैसे इंद्रियह देवी तथा आसुरी भई । तब आसुर जीव हतो सो दैवी जीव पास आयके कह्यो जो मेरोऊ गान करो तब दैवी जीव कह्यो 'यो यदंशः स तं भजेत्"मैं भवदंशहूँ भगवद्वान करूंगो। तब दैवी जीवकों पाप वेध न भयो । तब आसुरी जीव दैवी इन्द्रिय पास गयो उनको भयत्रस्त करिके को जो मेरो गान करो। तब देह तो दैवी जीवकी नहीं जो इन्द्रिय प्रविष्ट होयजाय । तब इंद्रिय