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________________ neltodiactamindanimative - - aneumoniakamamlesiastissamesessmamich - | लिखेंहें याहीते वहां गोपीचन्दन तो तब भयो जब कुमारिकानको नयन हैं जैसे कालिंदी चतुर्थप्रिया हैं और ब्रजलीलामें श्रीयमुनाजी हैं या प्रकार उभय लीलाविशिष्ट हैं याते तुर्यप्रिया हैं। कदाचित् या प्रकार कहिये जो नित्यसिद्धाको एक यूथ १ श्रुतिरूपाको एक यूथ १ कुमारिकाको एक यूथ १ श्रीयमुनाजीको एक यूथ १ या प्रकार तुर्यप्रिया जो कहिये तो श्रीयमुनाजीको अंगीकार श्रीयमुनाजीके श्रृंगार पहिले " श्रुतिरूपा कुमारिका” को नहीं श्रीयमुनाजी व्यापिवैकुंठमें हैं इनकी रेणुकाकी प्रतिनिधि कात्यायनी किये तब कुमारिकानको साधन सिद्ध भयो और श्रुतिनकोंहू दर्शनभयो हैं। तहां कहतहैं- “यत्र निर्मलपानीया कालिंदी सरितां वरा” ताते प्रथम प्रकार सोई तुर्याप्रियाते सिद्ध होत हैं और अष्टसिद्धि हैं सो प्रभु श्रीयमुनाजीको दिये हैं साक्षात्सेवोपयोगिदेहाप्ति १ तल्लीलाऽवलोकन २ तद्रसानुभव ३ सर्वात्मभाव ४ भगवदशीकरणत्व ५ भगवत्प्रियत्व भगवत्तात्पर्यज्ञत्व ६ भक्तिदातृत्व ७ भगवद्रसपोपकत्व ८ ये अष्ट सिद्धि श्रीयमुनाष्टकके प्रत्येक आठों श्लोककरि निरूपित हैं षड्गुणविशिष्ट धर्मी ये सप्त विधत्वह हैं 'अनंतगुणभूषिते' यामें कहे हैं। जलते यमयातनानिवृत्तिः रेणुते । तनुनवत्व, जलरेणु अधिक फलसंपादकहैं ॥ "स्मरश्रमजलाणुभिः " यह जलरेणुहूते अधिकी" जलादपि रजः पुण्यं रजसोपि जलं वरम् । यत्र वृन्दावनं तत्र नातास्नातकथा कुतः ॥" ये अष्टसिद्धि श्रीयमुनाजीकों दान किये हैं। इतनोही नहीं किंतु ये अष्टसिद्धिके दाताहू आप हैं पहिले श्रीगंगाजीमें दर्शनमात्रते ब्रह्महत्यादिक पातक निवृत्तिको सामर्थ्य हतो चरणस्पर्शतें अब इनके संगते “मुररिपोः प्रियंभावुका” भई तथा सकलसिद्धि Raman GANDMARSHAN - - une S am
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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