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________________ । %AD .. कमलाकार, यातें प्रभु जास्थलकी लीला कारवेके इच्छा किये तब वह पखुरी संकुचित होय आगे आय गई तब तात्कालिक पधारे तहाँ चतुर्विध पुरुषार्थ दशरथ लीलाकार धेनुकासुरको प्रसंग सब करि पीछे ब्रजको पधारे “ कृष्णः कमल पत्राक्षः पुण्यश्रवणकीर्तनः । स्तूयमानोऽनुगोपैः साग्रजो ब्रजमावजत् ॥” प्रभु सर्वकरन समर्थहें भक्तकी भावनामें आवें ऐसी लीला करतहैं जैसें वृष्ठिसमें श्रीगोवर्द्धन पास पधारे तब प्रभु कहा उठावें श्रीगोवर्द्धन आपुहीतें उठे दासको धर्म येही हैं जो स्वामी पधारे तब उठे ये अंतरंग भक्तहैं जैसी प्रभुकी इच्छाहै सो जानतहै जा प्रकारकी स्थितिकी इच्छाहै तहाँ तैसीही होय। अब या प्रकारकी इच्छाहै छत्रक होय गये छत्रकों डांडी चाहिये तातें श्रीहस्त ऊँचो करतहैं तातें व्रजहू लीलोपयोगी कमलाकार है पूर्णविकसित होय अर्थ विकसित होय संकुचित होय एक पांखड़ीही खुले दोइ खुलें जब जैसी प्रभुनकी इच्छा तैसें होय । व्रजमें वृक्षादिकहू ऐसे हैं जो ऋतु नहीं और भगवदिच्छाहै तो पुष्पित फलित होंय और ऋतुहै भगवदिच्छा हैं नहीं तो पुष्पित फलित न होय । जैसें चमेलीकी ऋतु वसंत, शरदमें कैसें होय ? " शरदोत्फुल्लमल्लिकाः" और ब्रजमें व्यापीवैकुंठको आविर्भाव है तातें सब भ्रमितें व्रजभूमि श्रेष्ठ हैं याप्रकार लीला भावनाको प्रकार विचारिये ॥ अथ भावभावना। | ब्रजभक्तनको भावसो सेवा ताकी भावना पहिले मंदिरको स्वरूप वेदमें ताको गोलोक धाम कहे “ यत्र गावो भूरिशृंगा अयासः" इति श्रुतेः। पुराणमें व्यापि वैकुंठ कहैं गोलोक धामको। "ब्रह्मानंदमयो लोको व्यापिवैकुंठसंज्ञकः" इति वाक्यात्।
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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