SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त - अनुरागयुक्त कियें । फेर प्रभुको जवारा समर्पि जवारा इनपर धरे। तब अंकुरित भगवद्विशिष्ट भये। आश्विन सुदि १५ शरदकी अष्ट भगवत्स्वरूप षोड़श भक्त या प्रकारके अनेक मण्डल अलौकिक चन्द्रको लौकिक चन्द्रमें निवेश मध्याऽऽकाशपर्यंत गमन तहां ताई दोय दोय भक्त एक एक भगवत्स्वरूप या प्रकारकी लीला फेरि अर्धरात्रि पीछे लौकिक चन्द्रको प्रकाश तहां जितने भक्त तितने भगवत्स्वरूप यह लीला औरहू प्रकारकी रात्रि अलौकिक हैं जो कुमारिकानकों वस्त्राहरण लीला विषे दिवसमें रात्रि दिखाये सो श्रुतिरूपा साधन सिद्ध हैं इनकी व्यापि वैकुण्ठमें नित्यलीलास्थ भक्तनको दर्शन भयो । तहांवर भयो-"कल्पं सारस्वतं प्राप्य बजे गोप्यो भविष्यथ।” और ब्रह्मा गोपीजनकों स्वरूप कहैं ।। तथा इनकीभक्तिहू कह “न स्त्रियोव्रजसुंदर्यः पुत्र ताः श्रुतयः किल । नाहं शिवश्च शेषश्च श्रीश्च ताभिः समःक्वचित्॥” इति । ये साक्षात् श्रुतिरूपा हैं साधारण स्त्री नहीं इनकी भक्तिसमान और कार्की भक्ति नहीं ब्रह्मा शिव शेष लक्ष्मी ये सबकी भक्तिको स्वरूप ब्रह्म-शिवको गङ्गासेवनद्वारा चरण सेवन भक्ति, शेषको नामद्वारा कीर्तन भक्ति, लक्ष्मीको वनमालाऽर्पण द्वारा अर्चन भक्ति इन सबनको मर्यादा भक्ति और व्रजभक्तनकों फलरूप आत्मनिवेदन भक्ति ताते इनकी भक्ति सबनतें श्रष्ठे हैं। ऋषि रूपा साधन साध्य भक्त यातें व्रतचर्या में दिवसमें अलौकिक रात्रिको दर्शन कराये और श्रुतिरूपानको तो व्यापि वैकुण्ठको दर्शन कराये । तातें और साधन रह्यो नाहीं। ऋषिरूपानकों तो कात्यायनीद्वारा अर्चन भक्ति, श्रुतिरूपानकों -पुष्टिव्यसनरूपा आत्मनिवेदनभक्ति याते कुमारिकानकी भक्तितें ndia i - - LETIRECORana
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy