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शिष्टायां श्रीकृष्णजन्माष्टम्यां शुभपुण्यतिथौ ममायुरारोग्यैवर्यादिवृद्ध गोनिष्क्रयभूतदक्षिणां अमुकनाम्म्रे अमुकगोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृजे तत्सत् | यह सङ्कल्प करि प्रभुनकी ओरते जल अक्षत छोड़िये । विचारचो होय सो ब्राह्मणकूं दीजिये । पाछे थापा दीजे द्वारेनपें जहाँ न लगाये होंय तहाँ लगावने । पाछे सिंहासनके आगे मन्दिर वस्त्र फिरायके झारी भरिके गोपीवल्लभभोग धरनो । पाटियाको थार आवै, तामें बूरा भुरकाय मिलावनो और बूरासों थाल साननो | चमचा धरनो । पापड़, भुजेना नित्यके धरने । तथा अनसखड़ीके थार में जलेबी आदि सब सामग्री धरनी । और एक कटोरीमें तिल, गुड़, दूध मिलायके धरिये । श्लोक पढ़के धरनो । श्लोक- " सतिलं गुडसम्मिश्रमंजल्यर्द्धमितं पयः । मार्कण्डेयाद्वरं लब्ध्वा पिबाम्यायुःप्रवृद्धये " ॥ २०८ ॥ या श्लोककूं तीन बेर पढिके कटोरी पास धरनी । और तिलक भोगको थाल छन्ना उधार के आगे धरनों। समय भये पूर्वोक्त रीतिसों भोग सरायके डबरा भोग धरनों | तबकड़ी वैयाकी नहीं अरोगे । पाछे पलना जो नित्य झूलत होय तो झुलावनो । झुनझुनादिक खेला। इये | पालनाके कीर्त्तन होंय और झूलें । पाछे राजभोग धरनों । तामें खीर बड़ा, छाछिबडा, दार, मूङ्गकी छड़ियल तीनकूड़ा आदि सब अधिकीमें धरनों । रायता तथा लीटी छोड़ बाकी नित्यको सब आवै । या प्रकार राजभोग धरके नित्यकी रीति तुलसी, शंखोदक, धूपदीप करके पूर्वोक्त रीतिसों विनतीकर टेरा लगावनो पाछे समय भये पूर्वोक्त रीतिसों भोग सरावनों । आचमन, मुखवस्त्र कराय बीडाधरके आरसी दिखाय आरती थारीकी तामें चाँदी के दीवलाकी करनी । आरसी दिखाय पाछें