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सात बेर उतारनी। पाछे पास धरनी पाछे अक्षत बड़े करि अभ्यंग करावनो। पाछे स्नान कराय श्रृंगार भारी करनों। स्नान ताराकी छाँ करावनो। वस्त्र लाल जरीके, बागो घेरदार, चीरा छज्जेदार, चन्द्रका सादा, आभरण हीराके, कर्णफूल ४ पाछे राजभोगमें सामग्री। पूवाको चून, घी, गुड, बराबर। तामें चिरोंजी, मिरच कारी आखी, खोपराकी चटक टूक पधरावने । और शाक, भुजेना, छाछिबडा, उत्सवको सब राजभोगमें धरनो। साँझको हटरीमें बिराजे । सन्ध्या आरतीमें बेत्र ठाड़ो करनो। शयन आरती ताई श्रृंगार रहे ता पाछे शृंगार | बडो करि पोढ़ावने ॥
कार्तिक वदि ३० दिवारीको उत्सव । ___ता दिन अभ्यंग होय । शृंगार । वस्त्र श्वेत जरीके । बागो घेरदार, कुल्हे, सुपेद पटुका, मूंथन लाल जोड, चन्द्रकाको सादा, लहेंगा, चोली, ठाडे वस्त्र अमरसी। सब दिनको नेग दहीके मनोहरको । दही बन्ध्यो सेर 53॥ मैदा चौरीठा सेरऽ१॥ घी सेर 5॥ खाँड सेर 5८ इलायची मासा ६आरती सब समय थारीकी । आभरण उत्सवके । गोपीवल्लभमें सेवको थार. आवे। ग्वाल नहीं होय । डबरा धरनों और राजभोगमें सामग्री दीवलाकी। ताको मैदा सेरऽ१ घी सेर ३१ तिल 5- बूरो सेरऽ२
और सब राजभोगमें छाछिबडा विलसारु, फडफाडिया चनाके। दार चनाकी तली । भुजेना ४ शाक४ सधाने उत्सवके ।२ खीर, | दही और जोउत्सवमें आवे सो सब धरनों । राजभोगमें आरती थारीकी करनी। पाछे उत्थापन भोग संध्या भोग भेलो आवे ।
और निज मन्दिरमें पोदायवेकी तैयारी करनी। दिवालगिरि चारयों आडी बाँधनी । बिछायत नीचे बिछावनी । शय्याके
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