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होय तबताई। पाछे उपरना ओढ़े । अभ्यंग होय । वस्त्र लाल जरीके । कुल्हे लाल जरीके । जोड़ चमकनों । ठाड़े वस्त्र मेघश्याम । पलङ्गपोष सुजनी बड़े कमलनकी आभरण हीराके । सामग्री पहले दिनके डोलकीमेंसे सबमेंसे राखी होय सो सब आवे। काँजी आवे । शाकभुजेना२छाछिबड़ा ।भौर आजसों मण्डली जब ताँई बने तब ताँई नित्य करनी सिंहासनके शय्याके पंखा धरने । सो धनतेरसके दिनताँई धरने । सन्ध्या उत्थापन भेलो धरनों । शृङ्गार बड़ो होय बागो शयनताँई रहे । कुल्हे कसूंभी। और आठ दिनताई जरीके वस्त्र धरे । फिरि सुनेरी, रूपेरी छापाके वस्त्र नये सम्वत्सरताँई धरे। रूपेको कुना अक्षय तृतीयाताई धरनो॥
चैत्र वदि ३ वस्त्र सुपेद जरीके । शृंगार मुकुट काछनीको। और गरमी होय तो शयनमें उपरना ओढ़े । नहीं तो बागा रहे ॥ - चैत्र वदि ४ वस्त्र लाल जरीके । दुमालो झूटको सेहरोधरे। ठाड़े वस्त्र श्याम॥
चैत्र वदि ५ वस्त्र पीरी जरीके । शृङ्गारमुकुटको, गरमी होय |तो शयनमें उपरना धरावनो॥
चैत्र वदि ६ वस्त्र सुपेद जरीके । शृंगार मुकुट काछनीको।। आभरन माणिकके ॥
चैत्र वदि ७ वस्त्र गुलाबी जरीके । बागो चाकदार । पाग छज्जेदार । चन्द्रका चमकनी । ठाड़े वस्त्र हरे॥
चैत्र वदि ८ वस्त्र श्याम जरीके । बागो घेरदार । पाग गोल कतरा धरे। ठाड़े वस्त्र पीरे ॥
चैत्र वदि ९ वस्त्र लाल छापाके बीचको दुमालो । ठाड़े वस्त्र श्याम॥
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