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MONISTRATHIMIT
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| अबीर, गुलाल उड़ावने । आरती थारीकी करनी फिर टेरा देके धूप, दीप करिके झारी भरनी । जलकी हाँड़ी १ धरनी । तामें कटोरी तेरावनी। पाछे छेले भोगमें सामग्री सब धरनी । तुलसी शंखोदक करनो। घड़ी २ को समय करनो। पाछे आचमन सुखवस्त्र करि बीड़ा १६ धरने बीड़ी २ मेंस माला धरायके एक बीड़ी अरोगावनी। दूसरी बीड़ी रङ्ग उड़ायके अरोगावनी पाछे पहलेही प्रमाण खेलाइये । झुलावनो । रंग उड़ावनो। दूसरी बीड़ी अरोगायके फिर खेलावनो । गुलाल, अबीर उड़ावनो । पाछे आरती करनी, नोछावर करनी । पाछे राई, नोंन करि दूर जायके अग्निमें डारे । पाछे दण्डवत करि डोलकी परिक्रमा ३ वा ५ करनी। पाछे यथाक्रमसों सबनकों उपरना ओढ़ावने । प्रथम मुखियाजीको दूसरो मुखिया ओढ़ावे । पाछे मुखियाजी सबनको उदावे फिरि डोल झुलायके टेरा करिये। ता पाछे श्रीठाकुरजीकूँ तिवारीमें पधरायके शृङ्गार बड़ो। करिये । गुलाल आछि तरहसों पोछनों । फिरि तनीया, कुल्हें, साड़ी कVवी रंगकी धरावनी । घुघी जरीकी उढ़ाय आभरन हीराके अनोसरमें रहें सो धरावने । और अनोसर करनो।
अथ साँझको प्रकार ॥ उत्थापन भोग सन्ध्या भोग भेलो धरनों। शीतल भोग उत्थापनमें धरनो । जो होरीडोल भेलो होय तो आभरन वस्त्र पहले लिखे हैं तो प्रमाण धरावने । सोनेको वेत्र श्रीहस्तमें ठाड़े धरावनों। अबीर मिलायके रार उड़ावनी । गुलाल तिवारीमें उड़ावनो। झाँझि पखावज बाजत धमार होय। पाछे आरती करनी।
चैत्र वदि २ द्वितीया पाटको उत्सव । सो सूर्यउदय होते श्रीठाकुरजी जागें। मङ्गलामें दुलाई ओढ़े। जब ताई ठण्ड
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