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ANANDROIN
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गोपालवल्लभ राजभोग आयचुके पीछे तिलक आर्ती पीछे थार ॥ सँवारिये अवतारलीलाविर्षे ऋषिरूपानको कोमल भाव व्यापि वैकुंठमें श्रीयमुनाजीसंबंधी भाव जलक्रीड़ातें शीतसंबंधी पाटको बागा तथा उष्णभोग श्रमते शीतल भोग गोपाष्टमी मुकुटकाछनीको श्रृंगार अभ्यंग नहीं यातें जो दानलीलाकी एकादशी तथा रासकी पून्यो तथा गोपाष्टमी ये तीन उत्सव अवतारलीलाके हैं तातें अभ्यंग नहीं तथा नये वस्त्र नहीं वही मुकुट काछनीको शृंगार तथा गोपालवल्लभमें नई सामग्री नहीं ये तीनों लीला व्यापिवैकुंठमें सदा हैं अवतारलीलामें दिनको नियम है तातें वाही दिन होत हैं लीला सदा है वनमें पधारिके लीला किये चतुर्विध पुरुषार्थ तथा दशरथ मिले १४रसकी लीला बनमें किये। वृंदावने श्रीमान् यह धर्म । कचिद्गायति यह अर्थ२ कचिच्च कलहंसानां यह काम ३ मेघगंभीरया वाचा यह मोक्ष ४ येहू च्यार रस हैं । " एकायनोसौ दिफलस्त्रिमूलश्चतूरसः " इति चकोर क्रौंच ह्यांते दशरस । चकोर शृङ्गार १ क्रौंच वीर २ चक्राहकरुण ३ भारद्वाज अद्भुत ४ बर्हि हास्य ९ व्याघ्र सिंह भयानक ६क्कचित् क्रीड़ा बीभत्स ७ नृत्यतें रौद्र ८क्वचित् पल्लव शांत ९ अपरे हतभक्ति १० ये चौदें रसकी लीला वनमें किये इनको स्थायीभावको प्रदर्शन में अन्तरंग भक्तनको
जतावत हैं। अलक हैं सो धर्म अर्थ काम मोक्षको स्थायीभाव। । गोरजश्छुरितकुंतल शोभाधायकतें रतिकी उत्पादक यातें
शृङ्गारको स्थायीभाव । गोरजव्याहतें जुगुप्सा भई सो बीभत्सको स्थायीभाव । बद्धबह मोरको मुकुट अग्रनिमित्ततें बीररसको स्थायीभाव जो उत्साह सो भयो और मोरके पंखको बाँधिके मुकुट सिद्ध देख आश्चर्यको स्थायीभाव जो विस्मयसो