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पद चलतवे बोल नहीं बैन ॥२॥राजस सात्विक तामस निर्गुण युग्म दरशनको आवत । मग्न भये सायुज्य मुक्ति फल त्रिविधरूप देखें सचु पावत ॥३॥ इह विधि खेल रच्योवृजमण्डल दीप दिवारी प्रगट दिखाई । तुर्यरूपके यूथ विराजित छबिपर द्वारकेश बलिजाई॥४॥सात्विकादिवत जोरसभेद है सो मेवा मिठाईके रसको आस्वाद अंगराग चोवा बीड़ा कपूर वर्ण श्यामकार चतुर्विध युक्तक्रीड़ा दीबड़ा आकृति श्यामके भेटसों होड़सों सहहोससों क्रीड़ाकी उत्कंठा आर्तीहू चोपड़की होय चोपड़वारेसों रसपरवशत्वसहित मोहित होय भाव वारे अन्नकूट मङ्गला आर्तीको रात्रिके वागाको दर्शन होय तातें ओढ़िके विराजें श्रीमुखहीको दर्शन होय रात्रिकी लीला गोप्य है तातें वागाको आच्छादन आती ताई गोप्य हैं वाही वागापर शृङ्गार होय यह मुख्य पक्ष। और यहू पक्ष हैं जो बागा बड़ो कार स्नानकरें फिर यही बागा पहिरें कुलहीके तुर्रा लाल सूतरू किनारी रुपहरी गोकर्णाकार रात्रिखेलमें लाल गोटी आपुकी हैं ताको भाव | सूचक लाल तुर्रा है तथा श्रीहस्तमें पीताम्बर रहै सोऊ नारंगीरंगकी दरियाईको वा केशरी दरियाईको अन्नकूटके भोगमें अनसखड़ी भोग प्रभुके आगे निपट, आगे माखनमिश्री राखिये सखड़ी भोग अनसखड़ीके परे । प्रौदभावके भक्त अग्रेसर हैं। तातें अनसखड़ी पास है कोमल भावके सजल हैं तातें सखड़ी दूरि हैं संध्याआर्ती पीछे श्रृंगार बड़ो होय तब कुलही रहे तुर्रा बड़ो करिये। भाईदूज अभ्यंग बागा सूथल लाल पाट दरियाई वा अतलशके हरयों चीरा शृंगार भये पीछे भोगमें खिचड़ी घी सधानो दही पापड़ कचिरिया प्रभृति राज भोगमें दही भात अध में कछु अन्नकूटकी सामग्रीमेंतें राखिये सो
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