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________________ । | भयो । वन्यप्रसून वनसंबंधी पुष्प हैं। यातें वनविषे प्रीति है। फिरहू वन पधारें तो यह भय भयो सो भयानकको स्थायीभाव | और प्रसून हैं प्रकृष्टा सूना हैं । तत्काल कुमिलाय ऐसेको धारण कहा । यातें हास्य भयो सो हास्यको स्थायीभाव रुचिरेक्षणम्' ऐसे सुन्दर नेत्रके दर्शन करनको वनमें न गयो जाय तातें भयो सो करुणाको स्थायीभाव । चारु हास देखिकै भयो क्रोध यातें जो हम तप्त रहैं आपु हसत हैं यह रौद्रको स्थायीभाव वेणुकोकणन सुनिके प्रयत्न शैथिल्य भयो सो निर्वेद यह शांतरसको स्थायीभाव। अनुगैरनुगीतकीर्तिः।' अनुचरकरिकें कीर्तिगायवेको अधिकार है । या करिके स्नेह भयो सो भक्ति रसको स्थायीभाव। या भांति.१४ रसकी लीला जो वनमें किये ताके स्थायीभाव विशिष्ट ब्रजसों लीलास्थ भक्तनको दर्शन कराये। प्रबोधनी ११ अभ्यंग पीरे पाटको बागा लाल पाटको बागा केशरी कुलही अथवा श्वेत कुलही साड़ी खुलती प्रभुको रुईको बागा यहां रजाई फर्गुल ओढ़े युग्म भद्रा न होय ता समें देवोत्थापन जो सवारें देवोत्थापन होय तो राजभोगमें फलाहार। सांझकों देवोत्थापन होय तो शयनभोगमें फलाहार आवे । श्वेत खड़ीको चौक सब मंदिरमें पूरिये । निज मंदिरमें तथा शय्यामंदिरमें नहीं। जाठौर देवोत्थापन होय ता ठौर चौकके खंडमें गुलाल भरे औरहू विचित्र करनों होय तो औरहू भांतिके रंग भरिये गंडेरीको मंडप करे १६ को ८ को ४ को जैसो सौकर्य होवे सो करे । बीचमें चौकी धरिये चारों कोन दीवीपर दीवा धरिये । दीवी न होय तो भूमिमें धरिये । सबेरे भद्रा न होय तो शृङ्गार भोग सरे पीछे प्रभुकों मंडपमें पधराइये नहीं तो उत्थापनभोग सरे पीछे पधराइये पीछे देवोत्थापन तीन बेर करिये - -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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