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________________ । नक्षत्र न होय तो जादिना सूर्योदयसूं पहले स्नानसमें ज्येष्ठा नक्षत्र आवेवादिन उत्सव माननो यामें पूर्णिमाको आग्रह नहीं। और ज्येष्ठा नक्षत्रकों क्षय होय तोह दूसरे दिन स्नानसमें ज्येष्ठा नक्षत्र आवतो होय तो ता दिन उत्सव माननो। और स्नानसमयसैं पहिलेही ज्येष्ठा नक्षत्र समाप्त होय तो केवल पूर्णिमाके दिन उत्सव माननो । और पून्योकी आवती पिछली रातको ज्येष्ठानक्षत्र होय और ग्रहण होय तो पहली पिछली रातर्फे नक्षत्र विनाहू केवल पूर्णिमामें स्नान करावनो ॥ ३२॥ अथ रथोत्सव निर्णय। आषाढ सुदि प्रतिपदातूं लेके जा दिन पुष्य नक्षत्र होय ता दिन रथयात्राको उत्सव माननो । सो पुष्य नक्षत्र सूर्योदय व्यापी लेनो। और दोई दिना पुष्य नक्षत्र सूर्योदयव्यापी होय तो पहले दिन रथयात्राको उत्सव माननो। और नक्षत्रको क्षय होय तो क्षयके दिनही पुष्प नक्षत्रमें उत्सव माननो । अथवा केवल द्वितीयाके दिन उत्सव माननो ॥३३॥ अथ षष्ठी षड़गु निर्णय । आषाढशद्ध षष्ठी कमँबा छठ सों छठ उदयात लेनी । और दोय छठ होय तो पहली छठ लेनी। और छटको क्षय होय तो बिद्धा छठ लेनी ॥ ३४॥ ___ अथाषाढशुद्धपौर्णिमा निर्णय । आषाढ़ सुदि पून्यो पर्वात्मक उत्सव, सो पून्यो उदयात् लेनी। और दोई पून्यो होय तो पहली पून्यो लेनी और पून्योको क्षय होय तो विद्धा पून्यो लेनी ॥३५॥
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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