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________________ MALAI RESSIONRNARE - DSCIEHDHIRap - | यह है जहाँ जो स्वरूप बिराजै तिनकी लीलाकी भावनांसों सेवा होय है कहीं नन्दालयकी लीलाहै कहीं निकुञ्जकी लीला है कहूँ प्रमाणप्रकरणकी प्रगट है और गुप्त है और कही प्रमेय प्रकरणकी प्रगट है और सब गुप्त है कहूं साधन, कहूं फलकी प्रगट है और गुप्त है जैसे श्रीनाथजी आदि सातों मन्दिरनमें जहां श्रीठाकुरजी विराजे हैं तहां एकही द्वार निज मन्दिरमें राखबेकी रीति है । और जगमोहनमें तीन दर रहे हैं। और शय्या मन्दिर वामभागमें रहे। और मन्दिर पूर्वमुख अथवा उत्तरमुख । और डोलतिवारी दक्षिण मुख और चौकके बाहर | | हथिआपोरी और सिंहपोरि होय, ताके आगे श्रीगोवद्धन चौक रहे है यह श्रीमन्दिरकी रीति है। अब श्रीनवनीतप्रियजीके सिंहासनकी पीठक चार कलसा लगे हैं औरचरनमें प्रायः तीन कलसा लगावेकी रीति है। और राजभोगके समय श्रीनवनीत प्रियजीके सिंहासनके आगे, खण्ड, ( सिंढी ) ताके आगे पाट बिछे ताके ऊपर चौपड बिछे ताके आगे एक छोटी चौकी बिछके, राजभोग आरती होय है। सो भोगके दर्शन होय चुकवे आवे तब चौकी पाट, खण्ड, सब उठाय लियो जाय फिर टेरा होय सन्ध्याभोग आवे । और श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीविठ्ठलनाथजी तथा श्रीमदनमोहनजीके यहांतो भोग समय तीन चौकी खण्डके आगे रहें । बीचकी चौकीपर चौपड़ माडीरहे । दोनोंबगलकी चौकीपर छोटीसी गादी बिछीरहे। और श्रीचन्द्रमाजीके राजभोगके समय चौपड़की चौकी शय्याके पास रहे।और खण्डके आगे एक छोटी चौकी धरीजाय है। और पाछे भोगके समय तीनों चौकी बिछे हैं। और राजभोगके समय खण्डके आगे एक आसन पाटकेठिकाने । - - - - -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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