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राखनो । पाछे टेरा करनो। शृंगार बागा बडो करनो। कुल्हेको शृंगार सब रहिवेदेनो । जोड़ चन्द्रका ३ को धरावनो। पिछोड़ा धरावनो । बाजू पोहोंची धराय । श्रीकण्ठको शृंगार बोटुनताँई करनो । कुण्डल धरायके पाछे प्रभूको ठिकाने पधरावने । झारी भरनी । सब साज नित्यवत् माडि अनोसर करनो। रथकू तिवारीमें राखनो । साँझकों सन्ध्या आरती पाछे श्रृंगार बड़ो करनो । श्रीहस्तमें पहुँची राखनी । शयन समय चौक रथ विना छत्रिकेमें विराजे । रथको चलावनो। आरती करि नित्यकी रीति अब सामग्री लिखे हैं मठड़ी, शकरपारा, सेवके लडुवा, गुना, बूंदी छूटी काँनी मैदाकी पूड़ी ये सब डोलसू, आधो बड़ाकी छाछि, फड़फड़िया चना शाक, भुजेना सँधाना, पेड़ा बरफी, दूध वासोंदि, खट्टो मीठो दही, विलसारु, सिखरन बड़ी, भुजे मेवा, सब डोल प्रमाणे । बीज चिरोंजीके लडुवा अंकूरी दोय तरहको पणा । ये स्नानयात्रा दूनो। आम ६०० डोलमें तीन भोग साजने । ताही प्रमाण तीनों भोग साजने । शयनमें प्रथम रथ थोरोसो चलावनो । ता पाछे आरती करने । दूसरे दिन राजभोगके लिये चारयों सामग्रीनमेंते दोय दोय नग राखनो । काँजी राखनो। अब रथयात्रा शयनमें चौकमें नहीं विराजें । साँझकूँ अंकूरी छुकी धरनी। पाछे दूसरे दिनहूँ नित्य दार छुकी धरनी सो जन्माष्टमीताई ॥ ___ आषाढ सुदि २ दूसरे दिन वस्त्र येही धरावने । श्रीमस्तक कुल्हे आभरण हीराके । आड़बन्ध धरावनो । चन्द्रका १ धरावनी कुल्हेके ऊपर। श्रृंगार गोटुनताई करनों। दार छडियल। कढ़ी डुबकीकी । सामग्री राखी होय सो धरनी । अब रथयावाटू फूआरा, छिड़काव, खसके टेरा, सुपेद चन्दन, राज
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