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MAHRAMANG
करनो भोग दूसरो भोगाइ दर्शन करना
जल अक्षत छोड़नो । पाछे स्थको चन्दन अक्षत छिड़कनों धूप दीप करिये । ता पाछे कटोरी १ पट्टीका भोग धरिये ता पाछे शंखनाद, घण्टा झालर, पखावज बाजत बड़ेनकी स्मरण करि दंडवत करि श्रीप्रभुकों गादी सुद्धां रथमें पधरावने । झारी भरके दर्शन खोलने । रथको थोरोसो चलावनो । एक कीर्तन होय । फिरि रथके अगाड़ी मन्दिर वस्त्र कराय चौकी माड़िये। | भोग धरनो। तुलसी शंखोदक, धूप, दीप करनो, पहले भोगको समय आध घड़ीको करनो । पाछे आचमन, मुखवस्त्र कराय बीड़ा२ धरि, दर्शनके किवाड़ खोलने । पाछे रथकू चलावनों। दोय बेर एक कीर्तन होय तहांताई दर्शन करावने । झारी भरनी । ता पाछे दूसरो भोग धरनो । घड़ी १ को समय करनो । भोग सराय बीड़ा ४ धरनें । माला धराय दर्शनके किमाड़ खोलने । थोड़ोसों रथकू चलावनो। पंखा मोरछल चमर सब करने । अब दूसरे कीर्तनको आरम्भ होय तब रथकू डोल तिवारीमें दक्षिण मुख पधरावनो । टेरा करनो। झारी भरनी । जलकी हाँड़ी १ धरनी तामें कटोरी तेरावनी सो छन्नासों ढाकके धरनी । ता पाछे छेलो भोग धरनो । तुलसी, शंखोदक, धूप, दीप करनो । समय पड़ी २ को करनो। पाछे भोग सरायके बीड़ा १० धरने । पाछे दर्शनके किवाड़ खोलने। बीड़ी १ अरोगावनी । रथकू चलावनो । चौथे कीर्तनको आरम्भ होय तब आरती थारीकी करनी । और धूप, दीप, तुलसी शंखोदक तो तीनो भोगमें होय और आरती तो एक पाछे भोगमें होय । अब आरती करिके न्योछावर राइ नोन
करनी । पाछे परिक्रमा ३ करनी। पाछे दण्डवत करि हाथ | खासा करिके रथकू चलावनो। निज मन्दिरकी तिवारीके द्वारपे
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