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आषाढ वदि १४ छापाकी कोरको धोती, उपरना, पाग गोल चन्द्रका ॥
आषाढ वद ३० गुलाबी पिछोड़ा, पाग छज्जेदार, कतरा ॥
रथयात्रा ।
आषाढ सुदि १ जा दिन पुष्य नक्षत्र होय ता दिन रथयात्राको उत्सव करनों । दूजकूँ पुष्य नक्षत्र होय तो दूजकूँ अथवा तीजकूँ होय तो तीजकूँ करनों । रथ पहले दिन साजि राखनों रथमें घोड़ा नहीं। और ठिकाने घोड़ा होय है । रथमें झालर | रेशमी रंगीन बाँधनी । पिछवाई रंगीन लाल । चन्दोवा रंगीन और चन्दोआ पिछवाई सब बदले सुपेत भाँतदार । तीन बजे ता समय श्रीठाकुरजी जागें । पलङ्गपोस सुपेद बड़ो बालभोग सेवके लडुवाको । मैदा सेर ४२ घी सेर ४२ खाण्ड दूनी । ता दिन अभ्यंग होय । वस्त्र सुपेद डोरिया के । सुनेरी किनारीके | बागो चाकदार | कुल्हे सुनेरी चित्रकी सुपेत । आभ रण उत्सवके जोड़ चन्द्रका ५ को शृंगार भारी करनों । कमलपत्र करनों । ठाड़े वस्त्र केसरी । सामग्री उपरेटाको मैदा सेर |5|| घी सेर ॥ बूरो सेर | शिखरन भात दही भात राधाष्टमी प्रमाणे । कढ़ी पलटे तीनकूड़ा पकोरीको । राजभोग में शाक२ भुजेना २ सेव पाटियाकी, बड़ाकी छाछि । राजभोग धरिके रथकूँ साजनो। उत्तरमुख तिवारी पधरावनो । गादी, तकिया, पेड़ेकी सुपेदी नित्यकी उतारनी । राजभोग आरती भीतर करिके पाछे रथको अधिवासन करनो। श्रौताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनो- “ ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो | महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया अस्य श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य रथाधिरोहणं कर्त्तुं तदङ्गत्वेन रथाधिवासनमहं करिष्ये" ।