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थेलीप्रभृतिक शनिवारकूँ बदलिये शय्याके ऊपर चादरा ढाँकिये। शय्याके इतउत चौकी,पडघा,झारी, बीडाके भोगके लिये धरिये । और पंखा शय्याके दोऊ दिशि डोलते दिवारीताई धरिये ॥ ता उपरान्त बाहिर आय श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत आचमनके लिये झारी, बीडा, तष्टी सिद्धकरिये ॥शीतकालमें झारीको जल उष्ण हाथसों सुहातो राखिये । पाछे स्नानकी सामग्री सिद्ध करिये । वाटापर परातधरि तामें चौकी १ स्नानके लिये धरि तापर वस्त्र सुपेत मीही मोहोरासों घोट कोमल कार बिछाइये । और अङ्गवस्त्रहू घोटासों घोट कोमल कार राखिये। और उत्सव तथा शनिवारको तेल फुलेल कटो
में धर राखिये । उबटना अबीरकों घिसि कटोरीमें राखिये। शीत समय अभ्यङ्गकी सामग्री ताती कार राखिये । ता उपरान्त समयसर मङ्गलभोग सराइये । झारी, बीड़ा, तष्टी लेके मन्दिरमें जाय बीड़ासिंहासन पर दाहिनी दिशि तबकड़ीमें धरिये । पाछे वामहाथसों तष्टीलेके दाहिने हाथसों झारीको जल तनक एक दूरि प्रभूसों रहि नवाइ योआचमनं कारयेत् । श्लोक-"कुरुष्वाचमनं कृष्ण प्रिययामुनवारिणा ॥ स्नेहात्मभावसंसिक्तान्भावय त्वं दयानिधे" ॥७॥ताके पीछे, मुखमाजनं कारयेत् । स्नेहाच्छ्रमजलं प्रोक्ष राधिकायाः कराञ्चलात् । स्मृत्वानन्दभरं नाथ कुरु श्रीमुखमार्जनम् ॥ ७८॥ मुखवस्त्र श्रीगकुरजीके सम्मुख करायके धरिये । ततस्ताम्बूलं समर्पयेत् । “ताम्बूलं च प्रियं कृष्ण सौरभ्यरससंयुतम्।गृहाण गोकुलाधीश त्वत्कपोलाभपांडुरम्" ॥७९॥ बीड़ादाहिनी ओर | धरिये ॥ उपरान्तभोग उठाय ठिकाने धरिये । भोगकी ठौर पड़घापर हाथफिराय मन्दिरवस्त्र फिराय हाथ धोय टेरा खोलि।