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________________ SENTER : Aria - - - 3D mammeena - motion चिन्तासन्तानहन्तारो यत्पादाम्बुजरेणवः॥स्वीयानान्तानिजाचार्यान् प्रणमामि मुहुर्मुहुः ॥७२॥ यह पढि श्रीपादुकाजीकों जगायके दण्डवत् करि श्रीठाकुरजीके वामभाग पधराय दण्डवत् करिये। जो श्रीपादुकाजी बिराजित होंय तो प्रथम श्रीपादुकाजीकों जगाय फिर प्रभुको जगावने । पाछे टेराखेंचि हाथ धोय मङ्गलभोग सिद्धकार राख्यो होय सो समर्पिये । ततो मङ्गलाभोग समर्पयेत् विज्ञापन । “भुंव भावकसंशुद्धदधि हुग्धादिमोदकान्॥प्रीतये नवनीतञ्च राधया सहितो हरे।।७३ ॥ यशोदारोहिणीभावारलेन सड़ बालकै भुक्तं यथा बाल्यभावे प्राकट्यादि च मे तथा॥७॥"राधाधरसुधापातुःकिमन्यन्मधु रायितम् ॥ यन्निवेद्यं तदप्येतनामसम्बन्धतो भवेत्” ॥७५ ॥ ता उपरान्त शय्यामन्दिरमें जाइये । ततः शय्यां विज्ञापयेत् । "सजीकरोम्यहं शय्यां रम्या रतिसुखप्रदाम् ॥ राधारमणभोगाथै तथा तद्योगताम्भज" ॥ ७६॥ उपरान्त दशमस्कन्धकी अनुक्रमणिकाको पाठ करत शय्याके कसना खोल शय्यावस्त्र दुलीचा प्रभृतिक सब उठाय बुहारीसों मार्जनकरि मन्दिर वस्त्र फिराय हाथ धोय दुलीचा तहाँ सुजनी समयानुसार विछाय तापर शय्या धरि पवैया लगाय पाछे सुपेती चादर बिछाय कसना खेचिये ॥ और प्रबोधनीते वसन्तपञ्चमी ताई शय्या नहीं खेंचिये ॥ शिराहनेके बालस्त धरिये । इतउत गिडदा धरिए पायतकी ओर ओढवेको वस्त्र घडीकरि धरिये। शीत समय रुईदार, गरमीके समय चादर मलमलकी ऐसे समयानुसार धरने । मुख वस्त्र सिरानेकी ओर दाहिनी दिशि धारये । ओढनी सिराहानेकी ओर बांई दिशि रहे । शिराहने । मृगमद प्रभृतिक सुगंध राखिये, अरु शय्याके वस्त्र सुपेत - -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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