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करनो। और मुखवस्त्र, अंगवस्त्र, सब नये राखने । गुञ्जा नई धरायके फूल माला धराइये । पाछे प्रभुको गादीसुद्धा पाटियाते सिंहासनपर पधराइये॥
अथ तिलकको प्रकार । सिंहासनके नीचे दोऊ आड़ी भीजी हलदीको चौक माँडिये। निज मन्दिरकी देहरी माँडिये। कुम्कुम्के थापा द्वारन लगाय वन्दनवार पतुआकी सब जगे बाँधनी। आरती चूनकी जोड़िके थारीमें धरनी, मुठिआ ४ चूनके धरने । एक तबकड़ीमें कुम्कुम्को गोला करके धरनो । तामें अतरकी दो चार बूंद डारनी। एक कटोरीमें पीरे अक्षत धरने । श्रीफल दोय, तामें कुम्कुम्की पाँच रेखा करनी। और बीड़ा चार, तिनकी नोक, कुम्कुम्सों रङ्गनी । और तिलककेताँई शलाका चाँदी वा सोनेकी राखनी। चीमटी चाँदीकी अक्षत लगायवेकू राखनी । रुपैया दोय भेटकू, रुपैया एक नोछावरकूँ। रुपैया एक कलशमें डावे।। रुपैया १ जन्मपत्रिकाको । यह सब साजके एक थारीमें धरनो । भोगको थार सिंहासनके पास जेमनी आड़ी एक पड़घापें धार छन्नासों ढाँकके धरनो । तामें महाभोगकी सामग्री सबनमेंसों दोय दोय नग साजने। पाछे सिंहासनके आगे खण्डको साज सब माँडनो। माला धरायके आरती चूनकी जोड़के दर्शनको टेरा खोलनो । पाछे वेणु, वेत्र, धरायके | आरसी दिखावनी । चरण स्पर्शकरि हाथ खासा कार, श्रीमहाप्रभूजीको स्मरण करि दण्डवतकरि कलशवारीकू तिवारीमें ठाड़ी करनी। झालर, घण्टा, शङ्खनाद, झाँझि, पखावज बाजत और धोल, गीत गावत, नगाड़ा बाजत, कीर्तन होत । कीर्तन