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| मोतीके । दहीकी सेवके लडुवाको मैदा सेर ॥ घी सेर || दही सेर 5 खांड़ सेर 5॥ सुगन्ध । ज्येष्ठ सुदि १४ चम्पई परदनी, फेंटा । कतरा १॥
ज्येष्ठ सुदि १५ स्नानयात्राको उत्सव । ज्येष्ठा नक्षत्र होय ता दिना नानयात्राको उत्सव करनो। पहले दिन शयन भोग धरिके जल भरि लावनों। जाठिकानेसों हमेस आवतो होय ता ठिकानेसों भरि लावनो । पाछे निज तिवारीमें जेमने कोनेमें खासाकरि कोरीहलदीको चौक पूरिये। सुंथिआ ऊपर हाँड़ा धरि तामें सब जल करिये। श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत जल भरखे जानो । और हाँड़ामें जल करे ता विरियां श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत जानों। तामें गुलाबजल पधरावनो । केशरि, अरगजा हाँडामें पधरावनी । तुलसी तथा रायबेलकी कली, गुलाबकी पांखड़ी डारिये॥पाछे श्रोताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनो ॥ “ॐ हरिः श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य प्रातज्येष्ठाभिषेकार्थ जलाधिवासनमहं करिष्ये" ॥ऐसे पढ़िके जल छोड़नो पाछे हाँडाकू कुम्कुम्सों रङ्गनो । साथिआ करने । और चमचासों जल हलावनो। पाछे कुम्कुम् अक्षतसों पूजन करनो अक्षत हाँड़ामें न पड़ें। पाछे कटोरी १ घटीकी भोग धरिये धूप दीप करिये । पाछे जलमें तुलसीदल बोहोत समर्पिये । और भोगमें तुलसीदल मेलिये पाछे शंखोदक करिये । पाछे नेक ठहरके आरती करिये पाछे हाँडाको मोड़ो बाँधिये ॥
आषाढ वदि १ कू तीन बजे ता समय श्रीठाकुरजी जागें। सब.साज कसीदाको बाँधनो । वस्त्र छापाके केशरी कोरके ।।
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