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श्रीहरिः ।
श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाश।
दूसरा भाग।
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श्रीकृष्णाय नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥
अथोत्सव निर्णय । श्रीबालकृष्णपत्कंजं मानसस्थं सुखप्रदम् ।
प्रणम्य तत्प्रेरणया ग्रन्थोऽयं क्रियते मया ॥ दोहा-वल्लभनन्दन पदयुगल, वंदनकरि सुखदान ।
निज मारग निर्णय निरखि, लिखिहूँ ताहि प्रमान ॥ अथ प्रथम श्रीमहाप्रभूनने श्रीभागवततत्त्वदीपनिबंधके | विषं “ एकादश्युपवासादि कर्तव्यं वेधवर्जितम् । ” या कारिकाविषे एकादशी निर्णयको क्रम लिख्यो है । तेसें अबहूँ एकादशी आरम्भ करिके निर्णय लिखतहूँ ॥
अथ एकादशी निर्णय। दशमी जो पचपन ५५ घड़ी होय तो वा एकादशीको त्याग करनो। और पलमात्रहू जो पचपन घड़ीमें ओछी होय तो वह एकादशी न छोड़नी । ऐसें श्रीकल्यानरायजीने हूँ आपने एकादशीको निर्णय कियो है तामें लिख्यो है । और जो ज्योतिषी पास न होय और वेधको सन्देह मनमें रहतो होय तो शुद्ध द्वादशीके दिन व्रत करनों ऐसो वाक्य है । और दोय एकादशी होय तो दूसरी एकादशीके दिन व्रत करनों। और जो दोय द्वादशी होय तो शुद्ध एकादशी होय तो हूँ पेहेली द्वादशीके दिनहीं व्रत करनो ॥१॥