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कालवा
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ARTHIVARAYARI
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कालमें मिहीं सुपेद चादर उड़ाइये ऐसे ऋतु अनुसार ओढ़ाइये।
और माला तबकड़ीमें धरिये । झारी, बीडा सब पधराय तबकडीमें धरने । बण्टा भोग धरनो तामें मठड़ा, अथवा लडुवा, तथा सघाँनेकी कटोरी साजके पधरावने । पाछे औरस्वरूपनको तथा श्रीपादुकाजी पोदावने । और शालगराम तथा गोवर्द्धन शिलाको बण्टीमें पोदावने । याही रीतिसों पोढावने ॥
पोदावत समय विज्ञापन करनी। "भावात्मकेस्मद्धृदयपर्यङ्के शेषरूपके । रमस्व राधिकया कृष्ण शयने रसभाविते" ॥२००॥प्रभुको शयन कराय नमस्कार करनों। पौढे पाछे दंडवत नहीं करनी। 'नमामि हृदये शेषलीलाक्षीराब्धिशायिनम्॥लक्ष्मीसहस्रलीलाभिः सेव्यमानं कलानिधिम् ' ॥२०१॥ या प्रकार नमस्कार करके शय्याको ढकना (चादरा) सिंहासनपर ढांकनों । फिर मन्दिरको दीया उठाय बाहिर लाइये । और जो गरमी होय तोतिवारीमें शय्या पधराय पौढाय पंखा करिये ता पाछे तालामङ्गलकारये ।
प्रभुको विज्ञप्ति नमस्कार करनो। * " नमामि हृदये शेषलीलाक्षीराब्धिशायिनम् । लक्ष्मीसहस्रलीलाभिः सेव्यमानं कलानिधिम् ” ॥
श्रीमती स्वामिनीजी। " श्रीकृष्णहृदयाजस्य विकाशिनि महाद्युते ॥ त्वदीयचरणाम्भोजमाश्रयेऽहमहर्निशम्" ॥२०२॥
ततः श्रीमदाचायोन् विज्ञापयेत् ।। "श्रीमदाचार्यपादाब्जं भजे दोषा हृदि स्थितम् । सदा श्रीराधिकाकान्त तत्र तिष्ठ च सुस्थिरम् ” ॥ २०३॥
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