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ततः प्रभु विज्ञापयेत्। "कियान् पूर्व जीवस्तदुचितकृतिश्चापि कियती भवान् यत्सापेक्षो निजचरणदाने बत भवेत् ॥ अतः स्वात्मानं स्वं निरुपममहत्त्वं ब्रजपते समीक्ष्यास्मन्नेत्र शिशिरय निजास्याम्बुजरसैः” ॥२०४॥
ततः श्रीमदाचार्यान विज्ञापयेत् । " सेवा श्रीबालकृष्णस्य यत्कृता त्वत्पदाश्रयात् ॥ जीवत्वादपराधांश्च क्षमस्व वल्लभप्रभो ॥ २०५ ॥ पाछे हाथ धोय नमस्कार करिये पौढ़े पाछे दंडवत न करिये । उपरान्त पूर्वोक्त रीतिसों सखड़ी अनसखड़ी प्रसाद, बीड़ा प्रभृतिक सब ठलाय साज सब धोय ठिकाने धरिये। जलपानकी मथनी ढांकि सब ठौर धोय स्वच्छ करिये। बाहिर आय यथायोग्य ब्राह्मण वैष्णवनको सन्मान करिये पाछे क्षुधा होय तो पूर्वोक्त रीतिसों रात्रिको बाधक न होय विचारके प्रसाद लीजिये अरु अगले दिनकी सेवा आभरण वस्त्रादिक स्वतः सिद्ध करिये । अरु रसोई, बालभोगके लिये सामग्री, शाकादिक सब सिद्ध करि धरिये। निश्चित ऐसे न रहिये। तदुक्तं निबन्धे-"स्वयं परिचरेद्भत्तया वस्त्रप्रक्षालनादिभिः॥ एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वापि पूर्तये 7 ॥२०६॥ जाते तनुजा सेवा करिये। उपरान्त व्यावृति करिये तो पूर्वोक्त रीतिसों करिये पुस्तक देखिये श्रीमद्भागवत, एतन्मार्गीय ग्रन्थपाठ करिये। तदुक्तं निबन्धे-" पठेच्च नियमं कृत्वा श्रीभागवतमादरात् ॥ सर्व सहेत पुरुषः सर्वेषां कृष्णभावनात्'' ॥२०७॥ अरु असमर्पित वस्तु सर्वथा न खाइये । तदुक्तम्" असमर्पितवस्तूनां तस्मादर्जनमाचरेत् ॥ निवेद्यञ्च समप्यैव
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