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सुवारितदीपभरे ॥ भरभावितभक्तरसैकरते॥ रतलोलविमुद्रितनेत्रवरे ॥ वरवल्लभदर्शितपुष्टिरसे । रसविठ्ठललालितपादयुगे ॥ युगभीतिनिवर्तितधर्मरतौ॥रतिरस्तु मम ब्रजराजसुते॥१९५॥ आरती करके प्रभुको दण्डवत करत विज्ञापन । "नमः कृष्णाय शुद्धाय ब्रह्मणे परमात्मने ॥ योगेश्वराय योगाय त्वामहं शरणं गतः” ॥ १९६॥
श्रीस्वामिनीजीकी विज्ञप्ति । "कोटिविद्युच्छटापूर्णे श्रीवृन्दाविपिनान्तरे ॥ सदापुलकसाङ्गि नमस्ते कृष्णवल्लभे” ॥ १९७॥
श्रीमहाप्रभुजीको नमस्कार । " श्रीभागवतभावार्थविभावार्थावतारितम् ॥ स्वामिसन्तोषहेतुं श्रीवल्लभं प्रणमाम्यहम् ” ॥ १९८॥
श्रीगुसांईजीको नमस्कार। " यत्कृपाबलतो नूनं भगवद्भक्तिरसोत्करः ॥ निजानां हृदयाविष्टस्तं वन्दे विट्ठलेश्वरम् ” ॥ १९९ ॥ या प्रकार विज्ञापन करके फिर हाथ खासा करके वेणु बड़ी करनी । भीड सरकाय टेरा करावनो। फिर माला बडी करके थारीमें धरनी । बागो बडो करनों । पाछे दंडवत करके उपरान्त शय्यापेतें ढक्यो होय चादरा सो उठायके फिर प्रथम वेणुमुख वस्त्र पधराय शय्यापे शिरानेकी ओर पधरावने । जेमनी तरफ अतर लगावनो। फिर दोनों स्वरूपन] शय्यापे पधरावने सो वाँई दिशिते दाहिनी दिशि पधराय पोढ़ावने । और दूसरे स्वरूपकों याही रीतिसों शय्यापर बाँई दिशि दाहिनी आरते प्रभुके सम्मुख करि पौढाइये । शीतकालमें रुईकी रजाईके भीतर सुपेती मिहीं चादरको अन्तरपट देके उढ़ाइये । उष्ण
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