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कह्योहै- 'शुक्के पूर्वाऽष्टमी पञ्चदश्योर्भद्रकादश्यां चतुथ्यौं परार्दै । कृष्णेऽन्त्याः स्यात्तृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशम्भुतिथ्योः ॥” शुक्लपक्षमें अष्टमी और पूर्णमासीके पूर्वाईमें एकादशी और चतुर्थीके उत्तरार्द्धमें भद्रा होयहै । कृष्णपक्षमें तृतीया और दशमीके उत्तरार्द्धमें सप्तमी और चतुर्दशीके पहले भागमें होय है । जैसे चतुर्दशीकी समाप्ति भयेसूं लेके प्रतिपदाके आरम्भताँई छप्पनघड़ी पून्यो होय तो पहेली अट्टाईस घड़ी भद्रा जाननो। ये भद्रा पञ्चाङ्गमेंहूं स्फुट लिख्यो होय है । और होरीके निर्णयमेंहूं याही प्रमाणे भद्रा जाननो ॥४१॥
अथ हिंडोलादोलनविजय निर्णय । श्रावण सुदि पून्योलूं लेके तीज ताई जा दिना दिन शुद्ध होय श्रीठाकुरजीकी वृष राशिकू अनुकूल चन्द्र होय शनैश्चर वार बुधवार न होय ता दिन हिंडोराविजय करनो। और कछू अड़बड़ाट होय तो जन्माष्टमी ताँईहूं हिंडोरा झूलें । और पवित्राहू तहाँताई धरे, ऐसे सदाचार है ॥ ४२॥
इति श्रीवल्लभाचार्यपादाम्बुजषडांघ्रिणा।
जीवनेन कृतः सम्यनिर्णयो व्रजभाषया ॥१॥ इति श्रीमथुरा सरस्वती भण्डार मुखियार रघुनाथजी शिवजी लिखित
वल्लभपुष्टिप्रकाशमें उत्सवनिर्णय दूसराभाग समाप्त ।
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१ जन्माष्टमी ताई पवित्रा धरिसके ऐसो सदाचार है । और कछू बड़े अड़बड़ाटसू जन्माष्टमी ताईहूँ न बनिसके तो प्रबोधिना तॉई हूँ पवित्रा धरायवेको काल ग्रन्थमें लिख्यो है। परन्तु वैष्णवनकों सर्वथा पवित्रा धरा विना रहेनो नहीं क्यों जो पवित्रा धराये विना आखे वर्षकी सेवा निष्कल हाते है । इति निर्णय ।