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________________ REPORTED HAR - राजभोग आवे श्रीकुलनाथजीमें वसन्त पीछे उठते शृङ्गारहीमें खेले । सो डोलपर्यन्त । पाछे राजभोग आवे है श्रीमदनमोहनजीमें छठते शृङ्गार पाछे खेल। पाछे राजभोग आवे है। और एक वसन्तपञ्चमीको उत्सवभोग सब जगे आवे है । और नित्यखेलके समय पासही एक पडघा छन्नासों ढाँकके आवे है। और रामनौमीकों श्रीविठ्ठलनाथजी तथा श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीमदनमोहनजी यह तीनो ठिकाने प्रातः सम श्रीठाकुरजीको जन्माष्टमीवत् पञ्चामृतस्नान होय है। और जगे जन्म समय श्रीबालकृष्णजी अथवा श्रीगिरिराजजीकोंही पञ्चामृत स्नान होय है। और केशरी बागा केशरी कुल्हे सब जगह धरावे हैं श्रीमहाप्रभुजीके उत्सबके दिन केशरीसाज केशरीबागा केशरी कुल्हे सब मन्दिरनमें धरे है। और श्रीगोकुलनाथजीमें श्वेतसाज श्वेतही कुल्हे रहे हैं। और तिलक नहीं होय है। सो ताको कारण कि श्रीपादुकाजी श्रीमहाप्रभुजीके चोरीमें गये मन्दिरनमेंते, ताते बिरह माने हैं । और अक्षयतृतीयाते सब मन्दिरनमें उष्ण कालको सब साज सुपेद होयहै । सो पिछवाइ, चन्दुआ, बागा, वस्त्र सब साज सुपेद रहे और नित्य मोतीनके आभूषण धरे है । चन्दनी पंखा, गुलाबदानी, माटीके कुञा आदि सब श्रीठाकुरजीके पास घरेजाय है। उत्थापनमें भिजोई, धोई दार, कच्ची । तरमेवा, पणो आदि शीतल भोग शीतल पदार्थ भोग आवे है । छिड़काव होय है। खसके टेरा ( पड़दा ) लगे हैं। सो सब रथयात्राताई रहैं। पाछे कछु कमती हो जाय हैं श्वेत साज कसुंभाछठ (आषाढ़सुदि ६) ताई रहे है। कहूँ अषाढपुन्यो ताँई रहे है। श्रीगोकुलनाथजीके | पवित्रा एकादशी ताई रहे है। ER -- । BREASTER
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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