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________________ मन्दिर में जाय चोगान, गेंद, दुलिचा, पेंड़ो, चरणगादी, पेंड़ा, प्रभृतिक सब उठाय ठिकाने धरिये । पाछे शय्या सिंहासनकी झारी, बीड़ाको बण्टा, माला, तष्टीप्रभृति सब उठाय तथा शय्याको बण्टाभोग, सब उठाय ठलाय साज सब धोय ठिकाने धरिये । पाछे झारी १ भरि नेवरा पहिराय पूर्वोक्त रीतिसों सिंहासनपर पधराइये | पाछे भीड सरकाय टेरा खेंचि उत्थापन समयको भोग सिद्धकरि राख्यो होय तर मेवादिक सो धरिये । उष्णकालमें पणा करि धरिये । अक्षयतृतीयाते जन्माष्टमी ताँई धरिये और गुलाबकी सामग्री भवाप्रभृति यथासौकर्य धरिये । यह सामग्री सब सिंहासनपर भोगवस्त्र बिछाय चौकी बिछाय भोगको थाल सिद्धकरि राख्यो होय सो धरनो । धरवेकी शीत-खोवा अगाडी राखनो, ताके जेमनी ओर मलाई, ताके पास बूरा, ताके पास केला, खरबूजा, ताके पास पणा, रस होय तो धरनो, दूसरी आडी मिठाई, मेवा, ताके पास दार भीजी एक दिन अंकूरी, एक दिन चगाकी दार, एक दिन मूङ्गकी दार, लोन मिर्च कारी पिसीकी कटोरी । haat थपडी बीचमें धरनी । और आस पास फल फलोरी धरनी, धरके बिनती करनी ॥ ततः उत्थापन भोग समर्पण विज्ञप्ति । "E यथा गोवर्द्धने भुक्तं फलमूलादिकं हरे || रामेण सखिभिः सार्द्ध पुलिन्दीभिः समप्पितम् ॥ १८० ॥ तथा फलादिकं सर्व्वे भुंक्ष्व भावापितं मया । पुलिन्दीवद्भावदानात्सार्थकं जन्म मे कुरु " ॥ १८१ ॥ उपरान्त शय्यामन्दिर में जाय शय्याविज्ञति कर पूर्वोक्तरीतिसों सवारिये । पाछे पहिले
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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