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________________ -- - - - HEHOOMARRIDORRIGARH REngaummonermomeyawa - ततः उत्थापन समयते रीति। ततश्चतुर्थयामे पुनः स्नानं कुर्यात् । पाछलो ७ घडी दिन रहे ता विरियां पूर्वोक्त रीति( स्नान करि अपरसकी धोती पेंहरि आचमन करि शिखा बाँधि तिलक मुद्राधारण करि प्रेमामृतको पाठ करत खासा जलसों हाथ धोय पूर्वोक्त रीतिसों घण्टानाद तीन बेर बजावनों । विज्ञप्तिः " हरिवल्लभनादे त्वं घण्टे हि भगवत्प्रिये ॥ प्रबोधावसरं ब्रूहि हरिव्रजवधूव्रतम् ” ॥ १७६॥ ता पाछे मन्दिरके पास जाय ताला खोलिये। ततश्चतुर्थयामे प्रभुं प्रबोधादुत्थापयेत् । “जय जय श्रीकृष्ण श्रीगोवर्द्धनोद्धरण धीर दयानिधे दीनोद्धरण श्रीविठ्ठलेश महाप्रभो राजाधिराज राजीवलोचन अशरणशरण शरणागतवजपञ्जर आश्रितपारिजात महाप्रभो जय जय जय" । या प्रमाण विज्ञप्ति करि, उपरान्त मंदिर खोलि उत्थापन करिये ॥ ततः प्रभुं प्रणम्य विज्ञापयेत् । “गोवर्द्धनधर स्वामिन ब्रजनाथ जनार्तिहन् ॥ श्रीगोकुलविधुं वन्दे विरहानलकर्शितः” ॥ १७७॥ तंतः श्रीमती स्मृत्वा प्रणमेत् (श्रीस्वामिनीजी) “ परमाह्लादिनी शक्तिं वन्दे श्रीपरमेश्वरीम् ॥ महाभागवती पूर्णविभवां हरिवल्लभाम् ॥ १७८ ॥ ततः श्रीमदाचार्यान स्मृत्वा प्रणमेत् । “वन्दे श्रीवल्लभाधीशं भावात्मानं भयापहम् ॥ साकार तापशमनं पुष्टिमार्गकपोषणम् ” ॥ १७९॥ या प्रकार विज्ञप्ति करि पाछे टेरा खोलि कीर्तन होत दर्शन करवाइए । उपरान्त PRODKINN UNMAMTADIWASIA RDERMATION NORAMDARA O ।
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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