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बीड़ा दो २ धरें सों दलद्वयको तृतीयपुमर्थको समर्पण मुठिया वारें सों लौकिक चतुर्विध पुरुषार्थको त्याग आर्ती कीये सो चार जोतिकरि चतुर्विध जें भक्त तिनके अवलोकनद्वारा संपूर्ण श्रीअंगानुभव भयो छह बेर वारें सो षड्गुणैश्वर्य लीलासहित जो वेददर्शनार्थ प्रादुरभूत्' तिनको प्रत्यंगानुभव भयो शीघ्र वारें सो निरावृत्तको अवलोकन शीघ्रही हैं और यातें वेगि वेगि वारिये सो बात्सल्यतें शीतको समय है बीड़ाभोग्य हैं सो शृंगारकी चौकीपर धरें तप्तोदकसों स्नानसों तम लयरूप हैं तातें श्रमनिवृत्तिद्वारा लीलांतरकों उदोधक हैं केशर लगायकें स्नान होय सो तो केशर रजतप्त तम जल सत्त्व त्रितय भक्तको उद्बोधक भयो स्वच्छतें निर्गुणकोंहू भयो परि सत्त्व आगे हैं तातें सर्वथा तमकों ही मुख्यता चाहिये । आनन्दको धर्म तपही हैं यातें फेरि अंग वस्त्र करनों सो जल सत्त्व हैं ताको रंचकहू अंश न रहैं यातें अंगवस्त्र ऐसें करिये सुखद् सों प्रत्यवयवमेंतें जलांशकी निवृत्ति होय सूक्ष्म अवयव होय तो अंगवस्त्रकी बाती करि फिरावे फिर श्यामस्वरूप होय तो फुलेल समर्पि अंगवस्त्र करनों सो "स्नेहयुक्तविमलितैः चिकणः” एसो स्वरूप सिद्ध करनो स्निग्धनीरद श्याममेंतें रस मलके और गौरस्वरूप होय तो स्नेह ऊपरही वर्ण श्यामते प्रगट हैं तब काहेंकों स्नान पीछे फुलेल लगावें अंगवस्त्र करे मनकों भाव विदित करिवेकों प्रयोजन नहीं वश्य हैं उहां वर्षा के लिये स्वयंहृत प्रभृतिहू लीलाविशेष हैं और अंतरतो श्याम वा गौर द्विविध स्वरूपको समर्पनोही अधिक सुगंधतें स्नेह व्यसनात्मक हैं लाल तासको बागा नखशिख अनुरागयुक्त करि हीराके आभरण सोशुक्रको रत्न हैं आनन्द सारभूत
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SAMPIRATION
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