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हलदीसों रङ्गीभई तिनमें दोय दोय सेवके लड्वा दोय दोय मठड़ी धरनी । पाछे हाँड़ी टोकरानमें भरनी ताके ऊपर उपरना ढाँकनों । तथा उपरना अङ्गोछा १६ ताके छेड़ा हलदीसों रङ्गनें। और कण्डेरकी छड़ी चार छै । और रेशमी दरियाईके टोरा दोय दोय सेवकनकू तथा वैष्णवनकू बाँटने । सो माथेपे बांधने । पाछे जहां पधारे पूजनकू तहां ताँई गुलाल, अबीरके चालनीसों चौक पूरनों छत्र, चमर, करत सुखपालमें पधारें। सो तहाँ श्रीगिरिराज पास छोटी साङ्गामाजी ऊपर पधरावनें। तहाँ प्रभुकोंबीड़ी आरोगावनी। पाछे आडो टेरा करिके हाँड़ी अघोटाकी अरोगावनी । पाछे फिर बीड़ी आरोगावनी गाय बुलावनी । पाछे श्रीगोवईनके गवाखामें लाल दरियाईको टूक दुहेरो करके बिछावनो। ताके ऊपर श्रीगिरिराजजीकों पधरावने । दण्डवत करनी। पाछे श्रीगिरिराजजीको तिलक, अक्षत, दोय दोय बेर करनों । पाछे तुलसी समर्पनी । श्रोताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनों-“ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुविष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याय श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहरार्दै श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिग्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भू.के भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तर्गते ब्रह्मावर्तकदेशे श्रीअमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्ये दक्षि| णायने शरहतौ मासोत्तममासे कात्तिकमासे शुभे शुक्लपक्षे प्रतिपदि शुभतिथावमुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽमुकयोगेऽमुककरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य श्रीगोवईनल्याभिवृद्धयर्थ श्रीगोवर्द्धनपूजनमहं करिष्ये । जल अक्षत छोड़नो। पाछे प्रथमजलसों न्हवावे । पाछे
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