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________________ A utomatoen ORREN Dommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm - - - - धरिये । फूल माला फिरि धरिये । पुष्प समयानुसार तबकड़ीमें धरिये । विज्ञापयेत् । "कुसुमान्यर्पितानीश प्रसीद मयि सन्ततम् । कृपासंदृष्टवृष्टया त्वदङ्गीकृतशोभितम् ॥” ॥१४४॥ गरमीमें राजभोग आरती ताँई पङ्खा करिये । चोवा, अतर प्रभृति सुगन्धकी डिबिया धरिये । पाछे टेरा खोलिके समयानुसार कीर्तन होत दर्शन करवाइए। पाछे बेणु बेत्र दहिनी दिशि धराइये । पाछे आरसी दिखाइये । पाछे पूर्वोक्त रीतिसों सज्जन करिये । देवशयनीते प्रबोधनी ताँई चित्रित थारीमें चांदीके दीवलामें चार बातीकी आरती करनी उपरान्त पूर्वोक्त रीतिसों उत्सव बिना नित्यकी आति करिये । तदा विज्ञापयेत् ॥ आर्या-राजभोग आरतीकी । "बजराजविराजत घोषवरे ॥ वरणीयमनोहररूपधरे ॥ धरणीरमणीरमणैकपरे॥ परमार्तिहरस्मितविभ्रमके ॥ १॥ मकराकृति कुण्डलशोभिमुखे॥ मुखरीकृतनूपुरदृयगतौ ॥ गतिसङ्गतभूतल तापहरे ॥ हरशकविमोहनगानपरे ॥२॥ परमप्रियगोपवधूहद ये ॥ दययादिनतापहरे सुहृदाम् ॥ हृदयस्थितगोकुलवासिजने॥ जनहृद्यविहारपरे सततम् ॥३॥ ततवेणुनिनादविनोदपरे ॥ परचित्तहरस्मितमात्रकथे॥ कथनीयगुणालयहस्तयुगे ॥ युगले युगले सुदृशां सुरतौ ॥ १४५॥ रतिरस्तुममत्रजराजसुते " इति श्रीगुसांईजीकृत राजभोगआर्तिकी आ· सम्पूर्ण । या प्रकार आरती करके श्रीमत्प्रभुं स्मरेत् ।। श्रीमत्प्रभुको दंडवत करतसमय विज्ञप्ति। “हे कृष्णराधिकानाथ करुणासागर प्रभो ॥ संसारसागरे घोरे मामुद्धर भयानके" ॥ १४६॥ । animascenamainee smonane ume
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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