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________________ N a wararuARISISRONMODEusarmaratmaramanm RBERIOTERORISEARNERRORITAPAISARTION AR Y ANTRAur - LADIGEEMAKRANEINDIAHILA nainamainademinine HINHRESSERRANTHREE m a अर्थ-न वेदपढवेसों न यज्ञकरवेसों न दान करवेसों न | कर्ममार्गसों न उग्र तप करवेसों इत्यादि कोटिन उपायसों मेरी प्राप्ति नहीं केवल प्रेमके कच्चे सूतसों मैं बन्ध्योहूँ। ऐसेही श्रीमद्भागवतके नवमस्कन्धमेंहूँ कह्योहै। “ अहं भक्तपराधीनो स्वतन्त्र इव द्विज" श्रीभगवान कहे हैं कि, हे नारद !अस्वन्तत्रकी नाई मैं अपने भक्तनक पराधीन हूँ। अर्थात् जब उठावें तब उठोंहों जब पौटावे हैं तब सोऊहूँ जब भोग घरेहैं तब भोजन करूँहूं इत्यादि। अपने भक्तनके भावके वश होय रह्योहूँ सोनजभक्तन समान प्रेमलक्षणा भक्ति काहूनें नहीं करी सो यह पुष्टिभक्ति है ताते सूरदासजीने गायो। “गोपी प्रेमकी बजा॥ जिन गोपाल किये वश अपने उरचारि श्यामभुजा".॥ सो फिर पूर्णपुरुषोत्तम साक्षात् आप अपने दैवीजीवन के उद्धारार्थ निजधामते भूतल पर श्रीआचार्यरूपते प्रगट होय पुष्टिमार्ग प्रगटकियो। श्रीगोवर्द्धननाथजीसों मिले। और सब जीवनकों शरणले सन्मुख किये पीछे श्रीगुसांईजी (श्रीविठ्ठलनाथजी) स्वतः श्रीनन्दकुमार आपके प्रकटहोय, कोटिकन्दर्प लावण्यस्वरूप श्रीनाथज्ञी श्रीगोवर्द्धन धारण किये। जो सारइन्वतकल्पमें श्रीब्रजमें प्रगटहोय सात स्वरूपते ग्यारह वर्ष बावन दिन पुष्टिलीला करीहै । षोड़श गोपिकाके मध्ये अष्ट कृष्ण होनेभये । श्रीनाथजी श्रीनवनीतप्रियजी २ श्रीमथुरानाथजी ३ श्रीविठ्ठलनाथजी ४ श्रीद्वारिकानाथजी ६ श्रीगोकुलनाथजी ६.श्रीगोकुलचन्द्रमाजी ७ श्रीमदनमोहनजी८ यह स्वरूपनकी सेवाको प्रकार पुष्टिमार्गरीतके अनुसार चलायो और आप सेवा करके अपने जननकों बताई । सो वल्लभाख्यानमेंहूँ कह्योहै । “जो आप सेवाकार शीखवी श्रीहरिः” फिर - - WONDESIRESENTURDHAROHIREE
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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