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सर्वदर्शनसंग्रहे
केवल नाममात्र को रह जाती है, परार्थानुमान की तो बात ही क्या ? (= यदि व्याप्तिज्ञान का साधन केवल शब्द को मानते हैं तब तो जिस व्यक्ति को धूम-अग्नि के अविनाभावसम्बन्ध का ज्ञान नहीं दिया गया वह तो धूम से अग्नि का अनुमान करेगा ही कैसे ? इस तरह आपके अपने तर्क से ही स्वार्थानुमान-जिसमें प्रमाणान्तर से व्याप्ति जानकर अनुमान होता है—का दुर्ग ध्वस्त हो जाता है। पञ्चावयव-वाक्यों का प्रयोग सम्भव न होने से परार्थानुमान का प्रयोक्ता भी नहीं मिल सकता। दोनों अनुमानों के लिए तर्कसंग्रह देखें।
विशेष-अनवस्था दोष-नैयायिकों के यहाँ कई दोष हैं जिनमें ये साधारण हैं । जब किसी वस्तु को उसी के आधार पर सिद्ध करते हैं तब आत्माश्रय-दोष होता है । दो वस्तुओं में एक को दूसरे के आधार पर सिद्ध किया जाय तो अन्योन्याश्रय-दोष होता है । तीन या उससे अधिक वस्तुओं के बीच वृत्त के रूप में घूमनेवाले तर्क को चक्रकदोष कहते हैं । यदि तर्क को अनन्त काल तक चलने दिया जाय तो अनवस्था-दोष होता है । ( इण्डियन रिसर्च इंस्टिच्यूट की सायण-ऋग्वेद-भाष्य-भूमिका, डा० सातकडि मुखोपाध्याय अनूदित, पृ० ७, पाद-टिप्पणी ) । शक्तिग्रह के ये साधन हैं
शक्तिग्रहं व्याकरणोपमानात्कोशाप्तवाक्याद् व्यवहारतश्च । वाक्यस्य शेषाद्विवृतेर्वदन्ति सान्निध्यतः सिद्धपदस्य वृद्धाः ।। ( वा०प०)
(१०. उपमानादि से भी व्याप्तिज्ञान संभव नहीं) उपमानादिकं तु दुरापास्तम् । तेषां संज्ञासंज्ञिसम्बन्धादिबोधकत्वेन अनौपाधिकसम्बन्धबोधकत्वासम्भवात् ॥
[ व्याप्ति-ज्ञान कराने में ] उपमानादि तो दूर से ही खिसक गये (= उपमान से व्याप्तिज्ञान नहीं होता )। इसका कारण यह है कि उपमान में संज्ञा ( गवय ) और संज्ञी ( गोसदृश पिण्ड ) का सम्बन्ध होता है, उसी सम्बन्ध का बोध कराना उपमान का काम है, उपाधि से रहित सम्बन्ध (= व्याप्ति ) का बोध कराना उसके लिए साध्य नहीं।
विशेष-उपमान का लक्षण तर्फसंग्रह में इस प्रकार किया गया है-'उपमितिकरणमुपमानम् । संज्ञासंज्ञिसम्बन्धज्ञानमुपमितिः ।' (पृ० १६ ) अर्थात् किसी वस्तु ( संज्ञी ) से उसके नाम ( संज्ञा ) का सम्बन्ध जानना 'उपमिति' कहलाता है । इस उपमिति का करण (= असाधारण कारण, साधन ) 'उपमान' कहलाता है। यहां करण का अभिप्राय है सादृश्य-सम्बन्ध को जानना । कोई व्यक्ति गवय को नहीं जानता किन्तु किसी जंगली आदसी से सुनता है कि 'गवय' 'गौ के समान होता है-वह वन में जाकर देखता है कि गौ के समान ही कोई जीव चर रहा है, वह पहली बात को याद करके तुरन्त समझ लेता है कि वर्तमान जीव गवय है । उपमान यही है—यहाँ 'गवय' संज्ञा या नाम है,